बेंगलुरू:- संसद के शीतकालीन सत्र से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वक्फ से जुड़ी नीतियों को लेकर कांग्रेस पार्टी की आलोचना की. इस दौरान उन्होंने देश की सबसे पुरानी पार्टी पर तुष्टीकरण की राजनीति को बढ़ावा देने और संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों को कमजोर करने का आरोप लगाया.
पीएम मोदी ने आगे आरोप लगाया कि कांग्रेस ने राजनीतिक लाभ के लिए धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को नष्ट कर दिया है. बता दें कि सत्र में चर्चा के लिए16 विधेयकों को सूचीबद्ध किया गया था, जिनमें विवादास्पद वक्फ संशोधन विधेयक भी शामिल है, जो वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में महत्वपूर्ण बदलाव की मांग करता है.
वक्फ नीतियों पर पीएम मोदी का बयान
प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि वह सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों और संवैधानिक सिद्धांतों की अवहेलना करते हुए केवल तुष्टीकरण के लिए वक्फ से संबंधित कानून बना रही है. वक्फ बोर्ड को संपत्ति ट्रांसफर करने के निवर्तमान कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा 2014 के फैसले के बारे में बोलते हुए उन्होंने कहा, “दिल्ली के लोग यह जानकर चौंक जाएंगे कि 2014 में कई संपत्तियां वक्फ बोर्ड को सौंप दी गई थीं. यह पूरी तरह से अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिए किया गया था. डॉ अंबेडकर के संविधान में इस तरह के तुष्टीकरण के लिए कोई जगह नहीं है.
डॉ के रहमान खान की प्रतिक्रिया
पीएम मोदी के बयान पर पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस नेता डॉ के रहमान खान ने प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने ईटीवी भारत से खास बातचीत में पीएम मोदी के आरोपों को बेबुनियाद बताया. उन्होंने स्पष्ट किया कि 123 वक्फ संपत्तियों का मामला करीब 30 साल पुराना है और इसमें मस्जिद, दरगाह और इमामबाड़े समेत मूल रूप से वक्फ की संपत्तियां शामिल हैं.
वक्फ संशोधन विधेयक 2024 विवाद का मुद्दा
प्रस्तावित वक्फ संशोधन विधेयक, जिसका नाम अब यूनिफाइड वक्फ मैनेजमेंट, सशक्तिकरण, दक्षता और विकास अधिनियम रखा गया है. इसका उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में सुधार करना है, जबकि सरकार का दावा है कि यह विधेयक अधिक पारदर्शिता लाएगा.
विपक्षी दलों और मुस्लिम संगठनों ने इसके निहितार्थों के बारे में चिंता जताई है. उनका तर्क है कि यह विधेयक सरकार को व्यापक शक्तियां प्रदान करता है, जिससे इन संपत्तियों पर सामुदायिक स्वामित्व को खतरा है.
संयुक्त संसदीय समिति को विधेयक की समीक्षा करने, हितधारकों से परामर्श करने और संसद को रिपोर्ट प्रस्तुत करने का काम सौंपा गया है. यह मुद्दा अभी भी गरमाया हुआ है, क्योंकि हितधारक शीतकालीन सत्र के दौरान आगे के घटनाक्रमों की प्रतीक्षा कर रहे हैं.