नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को प्रमोशन में रिजर्वेशन देने के मुद्दे पर बड़ा सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लिए पदोन्नति में आरक्षण की शर्तों को कम करने से इनकार कर दिया है और कहा कि कर्मचारियों को प्रमोशन में रिजर्वेशन देने से पहले क्वॉन्टेटिव डेटा जुटाने करने के लिए बाध्य है। प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता के आकलन के अलावा मात्रात्मक डेटा का संग्रह अनिवार्य है। उस डेटा का मूल्यांकन किया जाना चाहिए। हालांकि, केंद्र यह तय करे कि डेटा का मूल्यांकन एक तय अवधि में ही हो और यह अवधि क्या होगी यह केंद्र सरकार तय करे।
एससी-एसटी को प्रमोशन में आरक्षण देने के मुद्दे पर जस्टिस एल. नागेश्वर राव, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बीआर गवई की तीन सदस्यीय पीठ फैसला सुनाया। इससे पहले जस्टिस एल. नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुनवाई के बाद 26 अक्टूबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि हमने माना है कि हम प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता को निर्धारित करने के लिए कोई मानदंड निर्धारित नहीं कर सकते। एक निश्चित अवधि के बाद प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता के आकलन के अलावा मात्रात्मक डेटा का संग्रह अनिवार्य है। यह समीक्षा अवधि केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित की जानी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि कैडर आधारित रिक्तियों के आधार पर आरक्षण पर डेटा एकत्र किया जाना चाहिए। राज्यों को आरक्षण प्रदान करने के उद्देश्य से समीक्षा होनी चाहिए और केंद्र सरकार समीक्षा की अवधि निर्धारित करेगी।