नई दिल्ली :पूरी दुनिया में तापमान वृद्धि हो रही है। वैज्ञानिकों ने साल 2023 को सबसे गर्म साल घोषित किया है। इसके बाद वह धरती को अस्थाई रूप से ठंडा करने की तरीका तलाश रहे हैं। वैज्ञानिकों ने धरती की गर्मी को करने के लिए क्लाउड ब्राइटनिंग का इस्तेमाल किया है। इस तकनीक से बादलों को उज्ज्वल बनाया जाता है, जिससे धूप के एक छोटे से अंश को प्रतिबिंबित किया जाए। इससे धरती पर किसी एक इलाके के तापमान को कम किया जा सकता है।
तापमान होगा कम?
अगर यह तकनीक सफल हो जाती है, तो धरती के कई इलाकों में इसका व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जा सकता है। वैज्ञानिकों ने प्रौद्योगिकी का उद्देश्य के बारे में बताया कि समुद्र के तापमान को कम करने के लिए महासागरों के ऊपर आकाश में कई उपकरण स्थापित करना है। बीते कुछ दशकों में ग्लोबल वार्मिंग की वजह से धरती का तापमान लगातार बढ़ रहा है। इसकी वजह से समुद्र का पानी भी गर्म हो रहा है। इसके साथ ही पहाड़ों पर मौजूद ताजे पानी के ग्लेशियर भी पिघल रहे हैं। कई वैज्ञानिकों ने शोध में चिंता जाहिर की है कि अगर तापमान ऐसा ही बढ़ता रहा तो इससे धरती पर तबाही मच सकती है।
इस दिन किया किया परीक्षण
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, दो अप्रैल को वॉशिंगटन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने यह परीक्षण किया है। उन्होंने सैन फ्रांसिस्को में एक सेवामुक्त विमानवाहक पोत के ऊपर रखे एक बर्फ-मशीन जैसे उपकरण से आकाश में नमक के कणों की एक धुंध को तेज गति से छोड़ा।
स्टल एटमॉस्फेरिक एरोसोल रिसर्च एंड एंगेजमेंट नामक एक गुप्त परियोजना के तहत यह परीक्षण किया गया था। वैज्ञानिक बादलों को दर्पण के रूप में इस्तेमाल करना चाहते थे, जो आने वाली सूर्य की रोशनी को प्रतिबिंबित करता है।
किसने की थी खोज
ब्रिटिश भौतिक विज्ञानी जॉन लैथम ने इस अवधारणा को 1990 में बताई थी। उन्होंने प्रस्ताव रखा था कि 1,000 जहाजों का एक बेड़ा बनाया जाए, जो पूरी दुनिया में यात्रा करेगा और सूरज की गर्मी को वापस अंतरिक्ष में भेजने के लिए हवा में समुद्री जल की बूंदों का छिड़केगा, जिससे धरती के तापमान में कमी आएगी। लेकिन इस तकनीक से सिर्फ कुछ निश्चित इलाकों के तापमान में ही कमी होगी। अमेरिका इस पर फिलहाल खर्च कर रहा है।
जानिए कैसे करता है काम
बड़ी संख्या में छोटी बूंदें बड़ी बूंदों की तुलना में ज्यादा सूर्य के प्रकाश को प्रतिबिंबित करती हैं। इसकी वजह से हवा में एरोसोल खारे पानी की धुंध का छिड़काव करके सूरज की रोशनी को वापस उछाला जा सकता है। हालांकि, सबसे महत्वपूर्ण है कि कणों का आकार और मात्रा सही होना चाहिए। अगर कणों का आकार बहुत छोटा है, तो वे परावर्तित नहीं होंगे और बहुत बड़े कण बादलों को और भी कम परावर्तित कर देंगे।