नई दिल्ली:– दिमाग में चलने वाली हलचल का पता लगाने के लिए साइंटिस्ट्स लगातार रिसर्च कर रहे हैं. सदर्न कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी ने दिमाग की निगरानी के मामले में एक बड़ी छलांग लगाई है. यूनिवर्सिटी के साइंटिस्ट्स ने दिमाग पढ़ने के लिए खोपड़ी के अंदर तक झांक लिया. ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी शख्स के दिमाग में झांककर उसकी एक्टिविटी को ट्रैक किया गया.
दिमाग की गहरी समझ को परखने के लिए रोबोटिक आर्म्स और कंप्यूटर जैसे एक्सटर्नल डिवाइस को दिमाग के साथ सीधे जोड़ने में काफी चीजें अड़ंगा लगाती हैं. किसी भी ऐतबार से देखा जाए तो दिमाग, मशीनरी का अविश्वसनीय तौर पर एक कंप्रेस्ड हिस्सा है. यह अपने सीमित कुछ क्यूबिक सेंटीमीटर साइज में बहुत सारे काम करता है.
पहली बार दिमाग के अंदर झांका
इसलिए दिमाग क्या कर रहा है यह देखने के लिए जरूरी सेंसिटिविटी और संकल्प हासिल करने के लिए सटीक डिवाइसेज की जरूरत होती है. जानवर के मॉडल में दिमाग के छोटे हिस्सों में ऐसा करने की तकनीक मौजूद हैं. हालांकि, बड़े पैमाने पर किसी इंसान में यह काम करने के लिए उसकी खोपड़ी सबसे बड़ा चैलेंज है.
दिमाग की निगरानी करने के लिए एक नई अल्ट्रासाउंड टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया. पहली बार साइंटिस्ट्स ने अल्ट्रासाउंड वेव का इस्तेमाल करके किसी व्यक्ति के दिमाग के अंदर झांका है. इस शख्स के दिमाग की एक्टिविटी को तब रिकॉर्ड किया गया जब वो मेडिकल फैसिलिटी के बाहर था. यहां तक कि रिकॉर्ड की गई एक्टिविटी में उसका वीडियो गेम खेलना भी शामिल है.
‘खिड़की’ यानी क्रेनियल प्रोस्थेटिक
इस कामयाबी को हासिल करने के लिए रिसर्चर्स ने व्यक्ति की खोपड़ी में एक ऐसा मैटेरियल लगाया, जिससे अल्ट्रासाउंड वेव उसके दिमाग में जा सकें. यह मैटेरियल ‘क्रेनियल प्रोस्थेटिक’ है, यानी एक आर्टिफिशियल अंग. इसे ही एक ‘खिड़की’ कहा जा रहा है जिसके आर-पार देखा जा सकता है. अल्ट्रासाउंड तरंगें टिशू के बीच की सीमाओं से टकराती हैं.
कुछ तरंगें उछलती हुई अल्ट्रासाउंड जांच में वापस चली जाती हैं, जो एक स्कैनर से जुड़ी हुई रहती हैं. डेटा ने साइंटिस्ट्स को आदमी के दिमाग में क्या चल रहा है, इसकी एक तस्वीर बनाने की इजाजत दी, ठीक उसी तरह जैसे अल्ट्रासाउंड स्कैन के जरिए गर्भ में भ्रूण को देख सकते हैं.
खून में बदलाव से दिमाग की निगरानी
टीम ने समय के साथ दिमाग में खून की मात्रा में होने वाले बदलावों की निगरानी की, खास तौर पर दिमाग के उस हिस्से को जूम इन किया यानी बड़ा करके देखा, जिन्हें पोस्टीरियर पैरिएटल कॉर्टेक्स और मोटर कॉर्टेक्स कहा जाता है. ये दोनों हिस्से इंसान की हरकत को कंट्रोल करने में मदद करते हैं.
खून की मात्रा में होने वाले बदलावों का आकलन करना ब्रेन सेल्स की एक्टिविटी को इनडायरेक्टली ट्रैक करने का एक तरीका है. ऐसा इसलिए है क्योंकि जब न्यूरॉन्स ज्यादा एक्टिव होते हैं, तो उन्हें ज्यादा ऑक्सीजन और पोषक तत्वों की जरूरत होती है, जो खून की धमनियों के जरिए पहुंचाए जाते हैं. खून की मात्रा में बदलाव देखकर रिसर्चर्स यह पता लगा सकते हैं कि दिमाग की हरकत में कब और कहां बदलाव हो रहे हैं.
अलग-अलग काम करते हुए भी निगरानी
नई स्टडी गैर-मानव प्राइमेट्स में पिछली रिसर्च पर बेस्ड है. अब एक व्यक्ति के साथ काम करते हुए, साइंटिस्ट्स तब अल्ट्रासाउंड इमेजिंग का इस्तेमाल करके एक आदमी के दिमाग में होने वाली सटीक न्यूरल एक्टिविटी की निगरानी कर सकते हैं जब वो अलग-अलग काम करता है, जैसे कि एकसिंपल कनेक्ट-द-डॉट्स वीडियो गेम खेलना और गिटार बजाना. टीम ने हाल ही में साइंस ट्रांसलेशनल मेडिसिन जर्नल में पब्लिश्ड एक पेपर में अपनी खोज के बारे में बताया है.
लाइव साइंस के मुताबिक, इस रिसर्च के को-सीनियर स्टडी ऑथर और सदर्न कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में न्यूरोसर्जन डॉ. चार्ल्स लियू ने एक बयान में कहा कि जैसा गैर-मानव प्राइमेट्स के मामले में हुआ, रोगी के अल्ट्रासाउंड डेटा ने इरादों को जाहिर किया, जैसे- इस जॉयस्टिक को हिलाएं, इस गिटार को बजाएं, जबकि ये एक्शन या कह लें कि ये काम खुद किए जा रहे थे.
फंक्शनल अल्ट्रासाउंड इमेजिंग
फंक्शनल अल्ट्रासाउंड इमेजिंग एक तरह का अल्ट्रासाउंड है जो दिमाग में खून की मात्रा में बदलाव को ट्रैक करता है. इसे पहले से चली आ रही ब्रेन इमेजिंग टेक्निक्स, जैसे कि फंक्शनल मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग का एक उम्मीद भरा विकल्प माना जाता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि इसे दिमाग की एक्टिविटी में बदलाव के प्रति ज्यादा संवेदनशील माना जाता है.
इस तरह सैद्धांतिक तौर पर वास्तविक जीवन की परिस्थितियों में मरीजों के दिमाग की एक्टिविटी को ट्रैक किया जा सकता है. मौजूदा समय में यह एम्बुलेटरी EEG के साथ संभव है, लेकिन EEG खून के बहाव के बजाय इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी को ट्रैक करता है. यह सिर और खोपड़ी की त्वचा के जरिए ऐसा करता है, इसलिए यह बहुत सटीक नहीं है.
खोपड़ी का कुछ हिस्सा हटाया
इसी तरह इंसान की खोपड़ी ऐतिहासिक तौर पर अल्ट्रासाउंड तरंगों के लिए एक रुकावट रही है, जो उन्हें दिमाग में जाने से रोकती है. यही कारण है कि नई स्टडी में लियू और उनके साथियों ने एक ऐसे मरीज पर अपने नजरिए का टेस्ट करके इस रुकावट को दूर किया, जिसकी खोपड़ी का कुछ हिस्सा हटा दिया गया था. ऐसा एक गंभीर दर्दनाक चोट ‘ट्रॉमैटिक ब्रेन इंजरी’ राहत देने के लिए उसके दिमाग में दबाव को कम करने के लिए किया गया था.
आमतौर पर TBI के मरीज जो इस प्रक्रिया से गुजरते हैं, उनकी खोपड़ी के गायब हिस्से को बदलने के लिए टाइटेनियम जाल या कस्टम-मेड इंप्लांट दिया जाता है. लेकिन इस मामले में टीम ने अकोस्टिकली ट्रांसपेरेंट इंप्लांट बनाया. स्टडी के ऑथर्स ने कहा कि भविष्य में ये नई तकनीक केवल TBI वाले रोगियों तक ही सीमित नहीं रह सकती है.
कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में केमिकल इंजीनियरिंग और मेडिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर और इस रिसर्च के को-सीनियर स्टडी ऑथर मिखाइल शापिरो ने बयान में कहा कि ऐसे कई मामले होते हैं, जिनमें खोपड़ी के एक हिस्से को हटाने की जरूरत होती है. इसलिए ऐसे कई रोगी हैं जो संभावित तौर पर एक क्रेनियल प्रोस्थेटिक यानी कृत्रिम अंग से फायदा उठा सकते हैं, जो अल्ट्रासाउंड के जरिए इस्तेमाल किए जाने वाले अकोस्टिक सिग्नल के लिए पारदर्शी है.