नई दिल्ली:– दुनिया के कई हिस्सों में Mpox virus के बढ़ते मामलों ने सभी की चिंता बढ़ा दी है। अफ्रीकी देशों से शुरू हुआ यह संक्रमण स्वीडन, पाकिस्तान जैसे देशों में भी अपने पैर पसारने लगा है। वहीं, पाकिस्तान में इसके मामले मिलने के बाद भारत में इसे लेकर चिंता बढ़ गई है। एमपॉक्स के बढ़ते मामलों को देखते हुए खुद वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन ने इसे ग्लोबल हेल्थ इमरजेंसी घोषित किया है। ऐसे में इस संक्रमण से बचाव के लिए वैक्सीन एक प्रभावी तरीका साबित हो सकता है, जिसे लेकर दुनियाभर में रिसर्च जारी है।
एमपॉक्स, जिसे पहले मंकीपॉक्स के नाम से जाना जाता था, काफी हद तक चेचक की तरह ही होता है। ऐसे में कई लोगों के मन में यह सवाल है कि क्या चेचक यानी smallpox की वैक्सीन (Smallpox Vaccine for Mpox) इसके खिलाफ असरदार साबित होगी? इस सवाल का जवाब पाने के लिए हमने फरीदाबाद के फोर्टिस अस्पताल में न्यूरोलॉजी के निदेशक डॉ.विनित बंगा से बातचीत की। साथ ही यह भी जानने की कोशिश की कि किन लोगों को इस संक्रमण का ज्यादा खतरा है। आइए जानते हैं क्या है डॉक्टर की राय-
क्या चेचक की वैक्सीन है फायदेमंद?
डॉक्टर बताते हैं कि चेचक के टीके, विशेष रूप से Modified Vaccinia Ankara (MVA) जैसी न्यू थर्ड जनरेशन वैक्सीन ने एमपॉक्स के खिलाफ प्रभावशीलता दिखाई है। ऐसा चेचक और एमपॉक्स वायरस के बीच गहरा जेनेटिक संबंध के कारण है। कुछ अध्ययनों से संकेत मिलता है कि चेचक का टीका एमपॉक्स के खिलाफ 85% तक सुरक्षा प्रदान कर सकता है। हालांकि, टीके की प्रभावशीलता इस बात पर निर्भर करती है कि इसे वायरस के एक्सपोजर के कितने समय में लगाया गया है।
उदाहरण के लिए, एक्सपोजर के बाद चार दिनों के भीतर वैक्सीन से बीमारी की शुरुआत को रोकने में मदद मिल सकती है, जबकि एक्सपोजर के 14 दिनों के बाद टीकाकरण से लक्षणों की गंभीरता कम हो सकती है। दुनियाभर में एमपॉक्स के बढ़ते हालिया मामलों को देखते हुए, हाई रिस्क वाले लोगों की पहचान कर वैक्सीनेशन की मदद से इसके प्रकोप को नियंत्रित करना जरूरी है।
किन लोगों को है ज्यादा खतरा?
डॉक्टर बताते हैं कि एमपॉक्स मुख्य रूप से उन लोगों को ज्यादा प्रभावित करता है, जो किसी संक्रमित व्यक्ति या जानवर के निकट संपर्क में आते हैं। हाई रिस्क वाले लोगों में वे लोग शामिल हैं, जो ऐसी एक्टिविटीज में शामिल होते हैं, जो वायरस के जोखिम को बढ़ाते हैं, जैसे स्थानिक क्षेत्रों में जानवरों को संभालना या किसी संक्रमित व्यक्ति के साथ शारीरिक संपर्क रखना। हेल्थकेयर वर्कर्स और ऑर्थोपॉक्सवायरस से निपटने वाले लैब कर्मचारी भी हाई रिस्क में हैं। इसके अलावा, कमजोर इम्युनिटी वाले व्यक्ति, जैसे कि एचआईवी/एड्स वाले लोग, संक्रमित होने पर गंभीर परिणामों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।