नई दिल्ली:– जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ती गर्मी और असमय तथा असमान बारिश भारतीय कृषि के लिए बड़ी चुनौती बन सकती है। हाल ही में हुए अध्ययनों से ये सामने आया है कि बारिश की कमी और कृषि उपज के बीच गहरा संबंध है। मौसम विभाग के डेटा के मुताबिक पिछले लगभग दो दशकों में बारिश में काफी कमी आयी है। ऐसे में आने वाले समय में फसलों के उत्पादन में भारी गिरावट का खतरा है। आर्थिक सर्वेक्षण में इस पर ध्यान आकर्षित करते हुए, विशेषज्ञों ने अगले कुछ दशकों में तापमान और वर्षा में बदलाव के संभावित प्रभावों को लेकर चेतावनी दी है। ऐसे में, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से बचने और कृषि उत्पादकता को बनाए रखने के लिए सिंचाई सुविधाओं का विस्तार करने की बात कही है। वहीं ऐसी फसलों के विकास पर जोर दिया है जो ज्यादा गर्मी सह सकें और जिन्हें कम पानी की जरूरत हो।
आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि कई अध्ययनों में साफ हो चुका है कि बारिश की कमी फसलों को सीधे तौर पर प्रभावित करती है। दिग्विजय सिंह नेगी और भारत रामास्वामी की रिसर्चगेट में छपी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि बारिश में कमी और बढ़ती गर्मी के चलते 2099 तक वार्षिक तापमान में 2° तक की वृद्धि देखी जा सकती है, वहीं बारिश में 7 फीसदी की कमी से कृषि उत्पादकता में 8-12% तक की गिरावट देखने को मिल सकती है। ऐसे में हमें बेहतर सिंचाई के संसाधनों के विकास के साथ ही गर्मी, सूखे और बाढ़ जैसे हालात में उपज देने वाली फसलों का विकास अनिवार्य हो गया है।
आईसीएआर की संस्था सेंट्रल रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ड्राईलैंड एग्रीकल्चर के निदेशक डॉक्टर विनोद कुमार सिंह कहते हैं कि पिछले एक दशक में बारिश के दिनों में कमी आ गई है। पहले जहां हमें बारिश के तीन महीनों में 72 दिनों तक बारिश मिल जाती थी वहीं अब इनकी संख्या घट कर 42 हो गई है। ऐसे में इन दिनों में कई बार हमें अचानक और बहुत तेज बारिश देखने को मिलती है। इसके चलते फसलों को नुकसान पहुंचता है। बदलते मौसम को देखते हुए तमाम तरह के प्रयास किए जा रहे हैं जिससे उत्पादन पर असर न हो। सबसे पहले तो किसानों को जागरूक किया जा रहा है कि वो फसलों की बुआई के समय, गर्मी और ज्यादा बारिश बरदाश्त कर सकने वाली फसलों, और फर्टिलाइजर मैनेजमेंट के प्रति जागरूक हों। वहीं वैज्ञानिक लगातार ऐसी फसलों के विकास में लगे हैं जो जलवायु परिवर्तन को बर्दाश्त कर सकें। इसके अलावा ऐसी फसलों के विकास पर काम किया जा रहा है जिनकी बुआई के समय में लचीलापन हो। बारिश और गर्मी के आधार पर इनकी बुआई के समय में बदलाव किया जा सके। बारिश के पैटर्न में बदलाव को देखते हुए एग्रोनॉमी तकनीकों को भी विकसित किया जा रहा है। वहीं मौसम में बदलाव को देखते हुए जमीन के आर्गेनिक कार्बन को बचाए रखने के लिए फसलों के अवशेष को खेतों में सड़ाने, ऑर्गेनिक खेती को प्रोत्साहित करने आदि का भी काम किया जा रहा है। हालात को देखते हुए पहले ही लगभग 650 जिलों के लिए कंटीजेंसी प्लान बनाया जा चुका है। वहीं अब ब्लॉक आधार पर भी प्लान तैयार किए जा रहे हैं। आपात स्थिित में इनके आधार पर किसानों को बेहतर फसल के लिए जागरूक किया जा सकेगा।
जलवायु परिवर्तन के चलते देश के कई इलाकों में कभी भारी बारिश हो जाती है तो कभी सूखा पड़ जाता है। इससे किसानों को बड़ा नुकसान होता है। कृषि अनुसंधान संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉक्टर ज्ञान प्रकाश मिश्रा कहते हैं कि हाल ही में सरकार ने जलवायु परिवर्तन को देखते हुए 109 नई उन्नत प्रजातियों के बीज मार्केट में उतारे हैं। अब फसलों की इस तरह की प्रजातियां तैयार की जा रही हैं कि एकदम से सूखा या बाढ़ की स्थिति बने तो भी हमें कुछ उत्पादन मिलता रहे। फसल पूरी तरह से खत्म न हो। वहीं अनाज में पोषण की मात्रा को भी बढ़ाया जा सके। आज भी देश में एक ऐसा वर्ग है जो पोषण के लिए सिर्फ खाद्यान्न पर निर्भर है। जैव संवर्धित बीज इन लोगों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में काफी उपयोगी साबित हो सकते हैं।
बदलती जलवायु के खतरे को देखते हुए सरकार ने हाल ही में मिशन मौसम शुरू किया है। इस मिशन के तहत 2026 तक सुपर कंप्यूटर और उपग्रह प्रणालियों को और आधुनिक बनाया जाएगा। इससे किसानों के लिए सटीक भविष्यवाणी समय रहते की जाएगी। इस मिशन में किसी भी क्षेत्र में कृत्रिम बारिश कराने और बारिश रोकने की विशेषज्ञता भी विकसित की जाएगी। बेहतर मौसम पूर्वानुमान और कृत्रिम बारिश किसानों को बाढ़ और सूखे जैसे हालात से बचाने में मदद करेगी। इससे खेती में होने वाले नुकसान को रोकने में काफी मदद मिलेगी। ये सारी जानकारी पंचायत स्तर पर देने की भी तैयारी की जा रही है।
बजट में रखा गया ध्यान
जलवायु परिवर्तन के संकट को ध्यान में रखते हुए बजट में भी भविष्य की तैयारियों को ध्यान में रखा गया है। जरूरत को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री धन धान्य कृषि योजना के तहत विकासशील कृषि जिला कार्यक्रम बनाया गया है। इसके तहत राज्य सरकारों की भागीदारी के साथ कम फसलों की बुआई और औसत से कम ऋण लेने वाले लगभग 100 जिलों को शामिल किया गया है। वहीं संवर्धित कृषि उत्पादकता, फसल विविधता और पारंपरिक खेती को अपनाना, फसलों की कटाई के बाद भंडारण की सुविधा, सिंचाई की सुविधाओं में सुधार और आसान कर्ज की व्यवस्था की जाएगी। सरकार ने उच्च पैदावार बीज मिशन शुरू किया है। इसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए रिसर्च को बढ़ाना और उच्च पैदावार वाले कीट प्रतिरोधी फसलों को तैयार करना है। जल्द ही जुलाई 2024 के बाद तैयार किए गए 100 ऐसे बीजों की किस्में किसानों के लिए बाजार में उपलब्ध होंगी।
फेडरेशन ऑफ सीड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया के अध्यक्ष एवं सवाना सीड्स के सीईओ और एमडी अजय राणा ने कहा कि बजट में नीतिगत सुधारों पर काफी ध्यान दिया गया है, जिनमें राष्ट्रीय उच्च उपज बीज मिशन और कपास उत्पादकता मिशन शामिल हैं। ये दोनों पहल जलवायु सहनशीलता, कीट प्रतिरोधक क्षमता और उन्नत अनुसंधान एवं बीज नवाचार के माध्यम से पैदावार बढ़ाने पर केंद्रित हैं, जो बीज उद्योग के लिए अत्यधिक लाभकारी सिद्ध होंगी। उन्होंने आगे कहा कि बीज उद्योग को उम्मीद है कि राष्ट्रीय उच्च उपज बीज मिशन में हाइब्रिड बीज प्रजातियों को भी शामिल किया जाएगा। साथ ही, सरकार द्वारा किसान उत्पादक संगठन (FPO) प्रणाली को मजबूत करने की दिशा में उठाए गए कदम भी सराहनीय हैं। अजय राणा ने कहा कि केंद्रीय बजट 2025 भारतीय कृषि को विकास का मुख्य इंजन बनाए रखने की दिशा में एक परिवर्तनकारी कदम है, जो किसानों को उन्नत संसाधन, बेहतर बाजार पहुंच और नवीनतम तकनीक से सशक्त करेगा। पीएम धन-धान्य कृषि योजना, जिसे आकांक्षी जिलों के कार्यक्रम की तर्ज पर तैयार किया गया है, 100 कम उत्पादकता वाले जिलों के उत्थान के लिए एक ऐतिहासिक पहल है। इससे लाखों किसानों को बेहतर ऋण सुविधाएं, उन्नत भंडारण अवसंरचना, सिंचाई सहायता और फसल विविधीकरण के अवसर मिलेंगे। उन्होंने दालों और तिलहन में आत्मनिर्भरता के लिए घोषित छह वर्षीय मिशन का स्वागत किया, जो अत्यंत आवश्यक और समयानुकूल पहल है। यह आयात प्रतिस्थापन, मूल्य स्थिरता और भारत की कृषि आत्मनिर्भरता की प्रतिबद्धता को मजबूत करेगा। उन्होंने कहा कि भारत के निजी क्षेत्र, विशेष रूप से बीज उद्योग, ने कृषि अनुसंधान में अग्रणी भूमिका निभाई है। उन्होंने कहा कि हालांकि यह बजट कृषि क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण प्रगति है, फिर भी कुछ दीर्घकालिक चिंताओं को संबोधित किया जाना आवश्यक है। राष्ट्रीय उच्च उपज बीज मिशन के उद्देश्यों को पूरी तरह से प्राप्त करने के लिए अनुसंधान एवं विकास व्यय पर 200% आयकर कटौती की बहाली एक महत्वपूर्ण कदम होगा, जो निजी निवेश को आकर्षित करने और अनुसंधान में अधिक वित्तपोषण सुनिश्चित करने में सहायक होगा। इसके अलावा, उद्योग को उम्मीद है कि भविष्य में बीज उद्योग के लिए उत्पादकता आधारित प्रोत्साहन योजना का विस्तार किया जाएगा और बीज उत्पादन, प्रसंस्करण, भंडारण एवं परिवहन जैसी गतिविधियों पर जीएसटी छूट प्रदान की जाएगी।