CRPF ने बड़ा कदम उठाया है. देश के सबसे बड़े केंद्रीय अर्धसैनिक बल ‘सीआरपीएफ’ में महज 23 दिन के भीतर दो इंस्पेक्टर और एक एसआई सहित 10 जवानों द्वारा आत्महत्या किए जाने का मामला सामने आने के बाद अब फोर्स हेडक्वार्टर ने कई कदम उठाए हैं।
आत्महत्या के विभिन्न मामलों का अध्ययन करने के बाद कई तरह के निर्देश जारी किए गए हैं। जैसे बल की सभी यूनिटों में उन कर्मियों की पहचान की जाएगी, जो इस तरह का कदम उठा सकते हैं। उन्हें मनोरोग विशेषज्ञ द्वारा परामर्श दिलाया जाएगा। जब तक वह कर्मी पूरी तरह से तनाव मुक्त न हो जाए, बल की विशेष निगरानी में रहेगा। ऐसे कर्मियों को हथियार की पहुंच से दूर रखा जाएगा। सीआरपीएफ में पिछले पांच वर्ष के दौरान 240 से अधिक जवान आत्महत्या कर चुके हैं। अगर सभी केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की बात करें तो पांच वर्ष के दौरान 654 से अधिक जवानों ने आत्महत्या कर ली है।
‘निजी समस्या’ को ही जिम्मेदार ठहराया गया
पिछले दिनों सीआरपीएफ के एक इंस्पेक्टर की बॉडी पंखे से झूलती हुई मिली थी। दूसरे इंस्पेक्टर ने अपनी राइफल से खुद को गोली मार ली। एक सब-इंस्पेक्टर ने अपने गले में फंदा लगाकर जान दे दी थी। इस तरह की घटनाओं पर गृह मंत्रालय और फोर्स हेडक्वार्टर द्वारा एक ही जवाब मिलता रहा है कि संबंधित जवान को किसी तरह की कोई पारिवारिक समस्या रही होगी। गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय भी संसद में इस तरह के सवालों के जवाब में कहते हैं कि इन बलों में आत्महत्याओं और भ्रातृहत्याओं को रोकने के लिए जोखिम के प्रासंगिक घटकों एवं प्रासंगिक जोखिम समूहों की पहचान करने तथा उपचारात्मक उपायों से संबंधित सुझाव देने के लिए एक कार्यबल का गठन किया गया है, जिसकी रिपोर्ट तैयार हो रही है। हालांकि गृह मंत्रालय की ओर से समय-समय पर आत्महत्या होने के मामलों के पीछे ‘निजी समस्या’ को ही जिम्मेदार ठहराया गया है।
रिपोर्ट में सामने आए हैं ऐसे कारण
बल मुख्यालय द्वारा आत्महत्या के मामलों के पीछे की वजह जानने के लिए विभिन्न केसों का अध्ययन कराया गया था। बल मुख्यालय की रिपोर्ट में सामने आया है कि अधिकांश केसों में कार्मिक, पारिवारिक कलह, विवाहोत्तर संबंध, प्यार में नाकाम होने और कर्ज के दलदल में फंसने की वजह से मानसिक तनाव ग्रस्त हो जाते हैं। ऐसे में कार्मिक अंतत: आत्महत्या जैसा घोर घृणित कदम उठा लेते हैं। हालांकि बल महानिदेशालय द्वारा पूर्व में भी समय-समय पर ऐसे निर्देश जारी किए जाते रहे हैं। बल की तरफ से कहा गया है कि सभी स्तरों पर ऐसे तनाव ग्रस्त कार्मिकों की पहचान की जाए। इन कार्मिकों को मनोरोग विशेषज्ञ द्वारा परामर्श दिलाया जाए। जब तक वह कर्मी, तनाव मुक्त न हो जाएं, उन्हें विशेष निगरानी में रखें। ऐसे कार्मिकों को हथियार की पहुंच से दूर रखा जाए। मनोवैज्ञानिक सलाह के लिए टेलीफोन नंबर भी जारी किया गया है। भारत सरकार के सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण मंत्रालय द्वारा जारी मानसिक स्वास्थ्य एवं पुनर्वास के लिए टोल फ्री नंबर दिया गया है। सीमा सुरक्षा बल एवं एम्स के एमओयू द्वारा मुफ्त परामर्श के लिए भी कुछ फोन नंबर जारी किए गए हैं।
पांच साल में 654 से ज्यादा जवानों ने की आत्महत्या
केंद्रीय अर्धसैनिक बलों सीआरपीएफ, बीएसएफ, आईटीबीपी, एसएसबी, सीआईएसएफ, असम राइफल्स और राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड में जवानों व अधिकारियों द्वारा आत्महत्या करने के मामले कम नहीं हो पा रहे हैं। गत पांच वर्ष में केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के 654 से अधिक जवानों ने आत्महत्या कर ली है। आत्महत्या करने वालों में CRPF के 240, बीएसएफ के 174, सीआईएसएफ के 89, एसएसबी के 64, आईटीबीपी के 51, असम राइफल के 43 और एनएसजी के 3 जवान शामिल हैं। बजट सत्र के दौरान गृह मंत्रालय की संसदीय समिति ने अपनी 242वीं रिपोर्ट में कहा था कि आत्महत्या के केस, बल की वर्किंग कंडीशन पर असर डालते हैं। सेवा नियमों में सुधार की गुंजाइश है। जवानों को प्रोत्साहन दें। रोटेशन पॉलिसी के तहत पोस्टिंग दी जाए। लंबे समय तक कठोर तैनाती न दें। ट्रांसफर पॉलिसी ऐसी बनाई जाए कि जवानों को अपनी पसंद का ड्यूटी स्थल मिल जाए। अगर ऐसे उपाय किए जाते हैं तो नौकरी छोड़कर जाने वालों की संख्या कम हो सकती है।