सूरज की धूप गांव के लोगों तक नहीं पहुंची तो गांववालों ने इसका हल ढूंढ लिया. गांववालों ने अपना पर्सनल सूरज बना डाला. इटली के एक छोटे से गांव विगनेला ने ऐसा करके दुनिया के सामने उदाहरण पेश कर दिया. अब तक चर्चा होती थी कि चीन ने आर्टिफिशियल सूरज तैयार किया है, जिसमें 1 लाख करोड़ रुपए का खर्चा आया है. लेकिन इटली ने भी ऐसा कर दिखाया. खास बात है कि विगनेला ने इसे चीन के मुकाबले 1 प्रतिशत से भी कम लागत में तैयार किया है.विगनेला स्विटज़रलैंड और इटली की सीमा पर पड़ता है. यहां बहुत कम आबादी रहती है. यह नगर एक तरफ घाटी तो दूसरी तरफ पहाड़ों से घिरा हुआ है.
ठंड के महीनों में यहां सूरज की रोशनी नहीं पहुंच पाती. पूरे नगर में सर्दी और अंधेरा से सन्नाटा पसर जाता है. लेकिन जिस तरह वहां के लोगों ने मिलकर इस परेशानी का हल निकाला, वो पूरी दुनिया में एक मिसाल बन गई.किसने की बदलाव की पहल?विगनेला में बसावट की शुरुआत 13वीं शताब्दी में हुई थी. इटली के इस गांव के लोग 11 नवंबर को साल का आखिरी सूर्यास्त देखते हैं. तीन महीनों बाद यानी 2 फरवरी को यहां सूरज के दर्शन हो पाते हैं. यहां इस दिन जश्न मनाया जाता है. लोग पारंपरिक कपड़े पहनकर सूरज की वापसी का स्वागत करते हैं. यहां के 800 सालों के इतिहास में लोगों ने इन हालातों से समझौता कर लिया था. लेकिन 1999 में चीजों के बदलने की शुरुआत हुई
साल 1999 में, विगनेला के स्थानीय आर्किटेक्ट जियाकोमो बोन्ज़ानी ने चर्च की दीवार पर एक धूपघड़ी लगाने का प्रस्ताव रखा. धूपघड़ी एक ऐसा उपकरण होता है जो सूर्य की स्थिति से समय बताता है. लेकिन तत्कालीन मेयर फ्रेंको मिडाली ने इस सुझाव को खारिज कर दिया. धूपघड़ी की जगह मेयर ने उस वास्तुकार को कुछ ऐसा बनाने के लिए जिससे नगर में पूरे साल धूप पड़ती रहे.ऐसे सुलझ गई सालों पुरानी परेशानीकिसी जगह धूप लाना नामुमकिन सा लग सकता है. लेकिन इसे बेहद आसान वैज्ञानिक सिद्धांत से सुलझाया जा सकता है.
यह है रिफ्लेक्शन ऑफ लाइट. यह सिद्धांत कहता है कि चिकनी पॉलिश वाली सतह से टकराने से लाइट रिफ्लेक्ट होकर लौट जाती है. इसी के आधार पर आर्किटेक्ट जियाकोमो बोन्ज़ानी ने नगर के ऊपर की चोटियों में से एक पर विशाल मिरर लगाने की योजना बनाई. जिससे सूरज की किरणें मिरर से रिफ्लेक्ट होकर नगर के मुख्य चौराहे पर पड़ने लगे.एक करोड़ की लागत से बना मिररआर्किटेक्ट बोन्ज़ानी और इंजीनियर गियानी फेरारी ने मिलकर आठ मीटर चौड़ा और पांच मीटर लंबा एक विशाल मिरर डिजाइन किया.
इसे बनाने में 1,00,000 यूरो (लगभग 1 करोड़ रुपए) की लागत आई. 17 दिसंबर, 2006 को इस प्रोजेक्ट का काम पूरा हो गया. मिरर में एक खास सॉफ्टवेयर प्रोग्राम भी लगाया गया है. सॉफ्टवेयर की बदौलत मिरर सूरज के पथ के हिसाब से घूमता है. इस तरह चोटी पर लगे विशाल मिरर से नगर में दिन में छह घंटे तक सूरज की रोशनी रिफ्लेक्ट होकर आने लगी.यह आर्टिफिशियल रोशनी प्राकृतिक धूप के बराबर इतनी शक्तिशाली नहीं है. लेकिन यह व्यवस्था मुख्य चौराहे को गर्म करने और नगर के घरों को कुछ सूरज की रोशनी देने के लिए पर्याप्त है. गर्मी के मौसम में अगर ऐसी व्यवस्था रहेगी, तो विशाल मिरर की वजह से नगर में तेज धूप पड़ेगी. इसलिए, मिरर को केवल सर्दियों में इस्तेमाल किया जाता है.
साल के बाकी समय उस मिरर को ढक दिया जाता है.इस सफलता ने दुनियाभर की ऐसी ही समस्या से जूझ रही जगहों को प्रेरित किया है. 2013 में, दक्षिण-मध्य नॉर्वे की एक घाटी में स्थित रजुकन में विगनेला की तरह की एक मिरर लगाया गया था.