नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट सार्वजनिक शैक्षणिक संस्थानों और रोजगार में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए आरक्षण की मांग करने वाली याचिका पर विचार करने पर सहमत हो गया। भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा ने एक नोटिस जारी करके केरल के एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति की दायर याचिका पर केंद्र और सभी राज्यों के साथ केंद्रशासित प्रदेशों से जवाब मांगा। इसी तरह की याचिका का जवाब देते हुए केंद्र सरकार ने जुलाई में कहा था कि ट्रांसजेंडर व्यक्ति नौकरियों और शैक्षिक प्रवेशों में पहले से निर्धारित आरक्षण का लाभ उठा सकते हैं। उनके लिए कोई अलग आरक्षण प्रदान नहीं किया जा रहा है।
इसी साल मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (नालसा) बनाम भारत संघ के 2014 के ऐतिहासिक मामले में दिए गए अपने आदेश का अनुपालन नहीं करने का आरोप लगाने वाली एक याचिका पर अवमानना नोटिस जारी किया था।
केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के सचिव के दायर हलफनामे में कहा गया था कि “एससी/एसटी/एसईबीसी समुदायों से संबंधित ट्रांसजेंडर पहले से ही इन समुदायों के लिए निर्धारित आरक्षण के हकदार हैं।” इसके अलावा कहा गया था कि 8 लाख रुपये की वार्षिक पारिवारिक आय वाले एससी/एसटी/एसईबीसी समुदायों के बाहर कोई भी ट्रांसजेंडर स्वचालित रूप से ईडब्ल्यूएस श्रेणी में शामिल हैं।
अपने ऐतिहासिक फैसले में शीर्ष अदालत ने केंद्र और राज्य सरकारों को ट्रांसजेंडरों को “सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग” के रूप में मानने और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश और सार्वजनिक नियुक्तियों के मामलों में उन्हें सभी प्रकार का आरक्षण देने का निर्देश दिया था। ऐतिहासिक फैसले ने “तीसरे लिंग” और उनकी लिंग पहचान को कानूनी मान्यता दी।