नई दिल्ली :– हरियाणा शिक्षा निदेशालय ने पहली कक्षा में दाखिले को लेकर एक बड़ा बदलाव किया है. नए दिशा-निर्देशों के अनुसार अब पहली कक्षा में प्रवेश के लिए न्यूनतम आयु 6 वर्ष कर दी गई है. पहले यह सीमा साढ़े 5 साल थी. लेकिन राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के अनुरूप इसे बढ़ाया गया है. इस बदलाव का उद्देश्य बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास को ध्यान में रखते हुए शिक्षा को अधिक प्रभावी बनाना है.
आयु सीमा में बदलाव का कारण
शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि बच्चों को स्कूल की पढ़ाई के लिए मानसिक रूप से तैयार करने के लिए उचित उम्र बेहद जरूरी होती है. जब बच्चे 6 साल की उम्र तक पहुंचते हैं, तो उनकी समझने और सीखने की क्षमता अधिक विकसित हो जाती है. इससे वे स्कूल की पढ़ाई को बेहतर ढंग से समझ सकते हैं और शिक्षा प्रणाली के अनुरूप खुद को ढाल सकते हैं.
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का प्रभाव
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत शिक्षा प्रणाली को और अधिक प्रभावी बनाने की दिशा में कई सुधार किए गए हैं. आयु सीमा में बदलाव इसी नीति का एक हिस्सा है. नई शिक्षा नीति के तहत बच्चों के लिए 5+3+3+4 शिक्षा संरचना लागू की गई है. जिसमें 3 साल की प्रारंभिक शिक्षा और फिर औपचारिक स्कूली शिक्षा शुरू होती है. पहली कक्षा में 6 साल की न्यूनतम उम्र तय करना इसी संरचना का हिस्सा है.
शैक्षणिक सत्र 2025-26 से लागू होंगे नए नियम
नई नीति के तहत शैक्षणिक सत्र 2025-26 से यह बदलाव प्रभावी हो जाएगा. शिक्षा निदेशालय ने निर्देश दिए हैं कि जिन बच्चों की उम्र 1 अप्रैल 2025 तक 6 वर्ष पूरी हो जाएगी. केवल वही पहली कक्षा में दाखिला ले सकेंगे. हालांकि जिन बच्चों की उम्र 6 साल से कुछ महीने कम होगी. उन्हें राइट टू एजुकेशन (RTE) एक्ट 2009 के तहत 6 महीने की छूट दी जा सकती है.
अभिभावकों और स्कूलों के लिए जरूरी सूचना
अभिभावकों को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके बच्चे पहली कक्षा में दाखिले के लिए निर्धारित आयु सीमा को पूरा कर रहे हों. स्कूलों को भी दाखिला प्रक्रिया के दौरान इस नियम का सख्ती से पालन करने के निर्देश दिए गए हैं. यदि कोई बच्चा न्यूनतम उम्र से कम है, तो उसे इस सत्र में दाखिला नहीं मिलेगा. सिवाय उन मामलों के जहां आरटीई एक्ट के तहत छूट दी जा सकती है.
पहले से पढ़ रहे बच्चों पर असर नहीं
स्कूल शिक्षा निदेशालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि जो बच्चे पहले से नर्सरी, एलकेजी या यूकेजी में पढ़ रहे हैं. वे इस नए नियम से प्रभावित नहीं होंगे. ऐसे छात्रों की पढ़ाई पहले की तरह जारी रहेगी और उन्हें किसी भी तरह की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा.
अन्य राज्यों में भी लागू हो सकता है यह नियम
हरियाणा सरकार द्वारा लिया गया यह निर्णय अन्य राज्यों के लिए भी एक मिसाल बन सकता है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत पूरे देश में एक समान शिक्षा व्यवस्था लागू करने का प्रयास किया जा रहा है. इसलिए संभावना है कि अन्य राज्य भी जल्द ही इसी तरह के बदलाव करेंगे.
नई नीति के फायदे
बच्चों के मानसिक विकास में मदद: 6 साल की उम्र में बच्चे स्कूल की पढ़ाई के लिए अधिक तैयार होते हैं.
सीखने की क्षमता में सुधार: इस आयु सीमा के बाद बच्चे भाषा, गणित और अन्य विषयों को जल्दी समझ सकते हैं.
बच्चों के समग्र विकास पर ध्यान: शिक्षा नीति का उद्देश्य केवल पढ़ाई ही नहीं. बल्कि बच्चों के संपूर्ण व्यक्तित्व विकास पर ध्यान देना है.
शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार: यह बदलाव शिक्षा प्रणाली को अधिक प्रभावी और संतुलित बनाएगा.
संभावित चुनौतियाँ
हालांकि, इस बदलाव से कुछ चुनौतियाँ भी उत्पन्न हो सकती हैं:
स्कूलों को दाखिला प्रक्रिया में बदलाव करना होगा: सभी स्कूलों को अपने एडमिशन क्राइटेरिया में बदलाव करना होगा और इसे माता-पिता को स्पष्ट रूप से बताना होगा.
अभिभावकों की चिंता: कई अभिभावक अपने बच्चों को जल्दी स्कूल भेजना चाहते हैं. ऐसे में उन्हें इस नए नियम से परेशानी हो सकती है.
प्री-प्राइमरी सिस्टम पर प्रभाव: नर्सरी, एलकेजी और यूकेजी जैसी कक्षाओं की भूमिका अब और अधिक महत्वपूर्ण हो जाएगी. क्योंकि बच्चों को 6 साल की उम्र में पहली कक्षा में प्रवेश मिलेगा.