अफीम दो धारी तलवार है. सही हाथों में यह किसी दवा की तरह होता है, लेकिन गलत हाथों में ये नशे का खतरनाक पदार्थ बन जाता है. 1000 ईसा पूर्व में अफीम खेती की शुरूआत हुई थी. सुमेरियन में अफीम को हुल गिल यानी खुशी का पौधा कहा जाता था. केंद्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार, 330 ईसा पूर्व में सिकंदर महान ने परसियाऔर भारत के लोगों का अफीम से परिचय कराया था.भारत में अफीम उगाने का पहला रिकॉर्ड 15वीं शताब्दी में मिलता है. उस समय खंभात और मालवा में इसे उगाया जाता था. आगे चलकर मुगलों से लेकर ब्रिटिश सरकार तक सब के प्रशासन में अफीम का कारोबार काफी अहम था. ब्रिटिश सरकार ने तो इसके दम पर भारत और चीन दोनों पर कब्जा जमाया था. आइए जानते हैं अफीम का रोचक इतिहास.
मुगलों में था मनोरंजन का सामानमुगल काल में अफीम बड़े पैमाने पर उगाया जाता था और चीन और अन्य पूर्वी देशों के साथ व्यापार का एक महत्वपूर्ण साधन था. मुगल बादशाह अकबर के समय अबुल फजल की लिखी ‘आईने-ए-अकबरी’ में अफीम का उल्लेख है. इसमें पहली बार अफीम की खेती का संदर्भ मनोरंजन के उद्देश्य के लिए किया गया है. रिपोर्ट्स के अनुसार अकबर के पिता हुमांयू अफीम का शौक रखते थे. अकबर को अपने पिता और दादा की तरह अफीम का शौक नहीं था, लेकिन वो इसकी खेती पर राजस्व वसूलता था. अकबर, अफीम की खेती पर राजस्व वसूलने वाला, पहला भारतीय था. उसने ही सबसे पहले अफीम के उत्पादन और वितरण पर राज्य का एकाधिकार बनाया था.
‘आईने-ए-अकबरी’ में अफीम को वसंत ऋतु की मुख्य फसल बताया गया है. इसकी खेती उत्तर भारत के सभी प्रांतों में की जाती थी जो दस लाख स्क्वायर किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में फैले हुए थे. बाद में जब मुगलों की इन राज्यों पर पकड़ ढीली पड़ी तो अफीम की उगाई और इसे बेचने का कंट्रोल पटना के व्यापारियों के समूह के पास चला गया.अफीम से जीता पूरा भारतभारत के इतिहास में प्लासी के युद्ध को काफी अहम माना जाता है. साल 1757 की इस लड़ाई में ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल के नवाब को हराकर राज्य पर नियंत्रण हासिल किया था. इस जीत के साथ उनका बंगाल और बिहार की अफीम खेती पर भी कब्जा हो गया. उस समय अफीम बेचने से काफी मुनाफा हुआ करता था.
इसलिए अंग्रेजों ने बड़े पैमाने पर अफीम की खेती करानी शुरू कर दी. नतीजन पोस्ते (पॉपी सीड) की खेती करने वाली जमीन 2,83,000 हेक्टेयर से बढ़कर 3,03,000 हेक्टेयर हो गई. धान के खेतों में अब अफीम की खेती हो रही थी. इससे ईस्ट इंडिया कंपनी ने तो मोटा पैसा कमाया, लेकिन इसकी कीमत भारतीयों को चुकानी पड़ी. दरअसल, बंगाल में साल 1770 में आए सूखे की एक बड़ी वजह अफीम की खेती को बताया जाता है. इस आपदा में एक करोड़ से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी.इस सब के बाद भी ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने अफीम को लेकर अपनी नीति में ज्यादा कुछ बदलाव नहीं किया.
दरअसल, अफीम के व्यापार से उन्हें काफी फायदा हो रहा था. यहां तक कि अफीम को बेचकर जो मुनाफा हो रहा था उसका एक हिस्सा अंग्रेजों ने भारत के बचे हुए हिस्सों को कब्जाने के लिए वित्तीय सैनिक कार्यवाहियों में इस्तेमाल किया.अफीम की वजह से शुरू हुई चीन से लड़ाईअंग्रेजों ने अफीम की मदद से सिर्फ भारत ही नहीं चीन पर भी कब्जा जमाया था. यह बात 19वीं शताब्दी की शुरूआत की है. तब ब्रिटिश व्यापारी चीन से चाय, सिल्क जैसी चीजें खरीदा करते थे. लेकिन चीन बदले में उनसे कुछ खासा समान नहीं खरीद रहा था. इससे ब्रिटेन में सिल्वर की कमी का संकट मंडराने लगा. इसे सुधारने के लिए ब्रिटेन ने चीन के बाजार में अफीम को पेश किया. अफीम के सेवन के बाद उसकी आदत लग जाती है.
चीन में भी ऐसा ही हुआ.जब चीन ने पूरे राज्य में अफीम पर बैन लगा दिया तो ब्रिटिश व्यापारियों ने अवैध रूप से अफीम की तस्करी शुरू कर दी. परिस्थितियां कुछ ऐसी बनी कि अंततः 4 सितंबर 1839 को चीन और ब्रिटेन के बीच प्रथम अफीम युद्ध छिड़ गया. कुछ सालों बाद 1856 में दूसरा अफीम युद्ध हुआ. दोनों लड़ाईयों में हारने का परिणाम ये रहा कि चीन को अपना एक बड़ा क्षेत्र अंग्रेजों को गंवाना पड़ा.