नई दिल्ली:– कुछ दिन पहले नक्सलियों की केंद्रीय समिति के सदस्य सोनू उर्फ भूपति ने केंद्र सरकार के समक्ष शांति प्रस्ताव रखा था। इसके बावजूद छत्तीसगढ़ में चल रही नक्सल-विरोधी कार्रवाईयों के चलते अब उत्तर पश्चिम सब-जोनल ब्यूरो के प्रभारी रूपेश ने एक बार फिर युद्धविराम की अपील करते हुए एक भावुक पर्चा जारी किया है। इस पर्चे में पहली बार नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री विजय वर्मा का आभार व्यक्त किया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि सरकार की सख्त नक्सल-नीति से नक्सली हताश हो चुके हैं।
महाराष्ट्र के गड़चिरोली, छत्तीसगढ़, झारखंड तथा तेलंगाना जैसे नक्सल-प्रभावित राज्यों में सुरक्षा बलों ने बड़े पैमाने पर नक्सल विरोधी अभियान शुरू किए हैं। देश के गृहमंत्री अमित शाह ने मार्च 2026 तक नक्सलवाद का समूल नाश करने की घोषणा की है।
नक्सल विरोधी अभियान के चलते पिछले 15 महीनों में 400 से अधिक नक्सली मारे गए हैं और सैकड़ों ने आत्मसमर्पण किया है, जिनमें कई शीर्ष नेता भी शामिल हैं। इसके कारण आंदोलन नेतृत्वहीन होता जा रहा है। इसी डर से नक्सल नेताओं और समर्थकों ने 24 मार्च को तेलंगाना में एक बैठक कर सरकार के सामने युद्धविराम का प्रस्ताव रखा। उनका कहना है कि जब तक दोनों पक्षों में शांति वार्ता शुरू नहीं होती, तब तक कार्रवाई रोकी जाए।
1 महीने का युद्धविराम चाहिए : रूपेश
रूपेश द्वारा जारी नए पत्र में कहा गया है कि यदि सरकार वार्ता चाहती है, तो उसे कम से कम एक महीने के लिए युद्धविराम लागू करना चाहिए ताकि प्रतिनिधिमंडल मिलकर चर्चा कर सके। पहली बार रूपेश ने नरम भाषा का इस्तेमाल करते हुए छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री विजय वर्मा को शांति प्रयासों के लिए धन्यवाद भी दिया है। साथ ही यह भी कहा गया है कि यदि वार्ता करनी है तो हमारे नेताओं की सुरक्षा की गारंटी सरकार को देनी होगी।
नक्सलियों ने मांग की है कि शांति प्रस्ताव पर चर्चा के लिए उनके प्रतिनिधिमंडल, केंद्रीय समिति और विशेष ज़ोनल समिति के सदस्यों को मिलने की अनुमति दी जाए। इसके लिए सरकार को एक महीने का युद्धविराम लागू करना चाहिए। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इस प्रस्ताव के पीछे उनका कोई दूसरा उद्देश्य नहीं है।
पहले हथियार डालो
सरकार की ओर से इस प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा गया है कि यदि नक्सलियों को वास्तव में शांति चाहिए, तो उन्हें पहले हथियार डालकर आत्मसमर्पण करना होगा। अधिकारियों ने आशंका जताई है कि यह प्रस्ताव भी नक्सलियों की रणनीति का हिस्सा हो सकता है, जैसा कि दो दशक पहले तेलंगाना में हुआ था, लेकिन तब कोई ठोस नतीजा नहीं निकला था।