नई दिल्ली:– हिंदू धर्म में व्रत और त्योहार का महत्व होता हैं जिसमे सबसे बड़े त्योहारों में से एक दीवाली है। इस दिन घर औऱ आंगन को दीयों और रंगोली से सजाया जाता हैं और माता लक्ष्मी और भगवान श्रीगणेशजी का पूजन किया जाता है। दिवाली के त्योहार की शुरुआत नवरात्रि के बाद से हो जाती है। इस त्योहार में दीयों का जितना महत्व होता हैं उतना ही आकाशदीप जलाने का। वैसे तो इसे घर की सजावट का हिस्सा माना जाता हैं लेकिन इसका संबंध पौराणिक ग्रंथों से जुड़ा हुआ है जो अलग ही महत्व रखता है।
आकाशदीप और कंदील जलाने का महत्व
दीवाली के दिन आकाशदीप और कंदील जलाने का महत्व होता हैं। यहां पर हिंदू मान्यता के अनुसार कहा गया है कि, कार्तिक मास के दौरान जो कोई व्यक्ति शुभत्व की कामना लिए हुए आकाशदीप का दान करता है उसे सुख-संपत्ति और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। साथ ही जो आकाशदीप आसमान में छोड़ते हैं उन्हें भगवान के साथ ही पितरों का भी आशीर्वाद मिलता है। इसे लेकर कहा गया है कि, जो व्यक्ति दीवाली के दिन आसमान में दीपदान का काम करता है उसके पितरों को मोक्ष की प्राप्ति मिलती है
वह व्यक्ति आसानी से परमलोक को प्राप्त हो जाता है। इसलिए दीवाली के दिन आकाशदीप या फिर कहें कंदील को लोग आश्विन शुक्लपक्ष की एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्लपक्ष की एकादशी तक अपने छत, बालकनी या फिर घर के मुख्य द्वार पर लगातर जलाते रहना चाहिए।
इन ग्रंथों से जुड़ा है आकाशदीप का महत्व
यहां पर दीवाली पर जलाए जाने वाले आकाशदीप का महत्व होता है हिंदू के पवित्र ग्रंथों में से एक रामायण में इसका उल्लेख मिलता है।जब अयोध्या के राजा राम लंका विजय के बाद वापस अपने नगर लौटे तो वहां के लोगों ने उनके स्वागत में दीये जलाए थे तो वहीं पर इस दीपोत्सव को दूर तक दिखाने के लिए लोगों ने बांस में खूंटा बनाकर उसमें दीये के जरिए रोशनी की थी इसका प्रकार अब बदल गया है।
इसके अलावा महाभारत काल से भी आकाशदीप का महत्व जुड़ा हुआ है कहते हैं कि, महाभारत के युद्ध के दौरान दिवंगत हुए लोगों की याद में भीष्म पितामह ने कार्तिक मास में विशेष रूप से दीये जलवाए थे. जिसके बाद से यह परंपरा लगातार चलती चली आ रही है। आज के समय में आकाशदीप एक से बढ़कर एक मार्केट में मिल रहे है।