नई दिल्ली:– महाभारत में द्रौपदी की जन्म कथा और उनके व्यक्तित्व का उल्लेख मिलता है। महाभारत कथा के अनुसार द्रौपदी का जन्म यज्ञ में से हुआ था, इसलिए द्रौपदी का नाम यज्ञसेनी रखा गया। वहीं, पांचाल के राजा दुपद्र की पुत्री होने के कारण यज्ञसेनी को द्रौपदी और पांचाली भी कहा गया। सांवले रंग की वजह से द्रौपदी का एक नाम कृष्णा भी था। यज्ञसेनी को द्रौपदी नाम से प्रसिद्धि मिली लेकिन द्रौपदी के व्यक्तित्व की बात करें, तो द्रौपदी केवल पांडवों की पत्नी या फिर राजा दुपद्र की पुत्री के रूप में ही सीमित नहीं थी बल्कि उनके स्वभाव में ऐसे कई विशेषताएं थीं, जिनके बारे में आज भी बातें की जाती हैं। द्रौपदी की कई विशेषताओं में उनकी सुंदरता भी शामिल थी। महाभारत की कहानी के अनुसार द्रौपदी की सुंदरता के बारे में इंद्रलोक की अप्सराएं भी चर्चा करती थीं, लेकिन वे भी द्रौपदी की सुंदरता के रहस्यों को नहीं जान पाती थीं। आइए, जानते हैं द्रौपदी की सुंदरता की विशेषताएं।
द्रौपदी का रंग सांवला और उनके नैन-नक्श इतने मनमोहक थे कि उन्हें देखने वाले देखते रह जाते थे। सांवले रंग के कारण द्रौपदी का नाम कृष्णा था। द्रौपदी राजा दुपद्र द्वारा किए गए यज्ञ कुंड से उत्पन्न हुई थीं, इसलिए उन्हें यज्ञसेनी भी कहा जाता है। अग्नि से उत्पन्न हुई द्रौपदी के चेहरे पर इतना तेज था कि उन्हें देखने वाला कोई भी व्यक्ति उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाता था। क्रोध में द्रौपदी का चेहरा अग्नि के समान और भी कांतिवान हो उठता था।
महाभारत की कहानी के अनुसार द्रौपदी की काया सुंदर और कोमल थी। उनकी त्वचा किसी शिशु के समान कोमल थी लेकिन जब द्रौपदी को क्रोध आता था या फिर बल की आवश्यकता होती थी, तो कोमल द्रौपदी कठोर मांसपेशियों वाली यज्ञसेनी बन जाया करती थीं। द्रौपदी को देवी काली का रूप भी माना जाता है। द्रौपदी के मनमोहक नैन-नक्श उन्हें और भी सुंदर बनाते थे।
महर्षि वेदव्यास ने द्रौपदी को कौमार्य का वरदान दिया था। इसका अर्थ यह था कि द्रौपदी का शरीर हमेशा 16 वर्ष की कन्या की तरह ही नजर आता था। द्रौपदी जब भी एक पति से दूसरे पति के पांच जाती थी, तो वापस अपना कौमार्य प्राप्त कर लेती थीं। इस कारण से द्रौपदी को पंचकन्या में शामिल किया जाता है। इंद्रलोक की अप्सराएं भी द्रौपदी की चर्चा किया करती थीं।
महाभारत की कहानी के अनुसार द्रौपदी के शरीर से ऐसी अद्भुत सुंगध निकलती थी, जिसका मुकाबला कोई इत्र या फूल भी नहीं कर सकते थे। द्रौपदी जहां से भी गुजरती थी, वहां पर एक अद्भुत-सी सुंगध छोड़ जाती थी। ऐसी सुंगध किसी भी फूल या फिर किसी अन्य चीज में से नहीं आती थी। इस सुंगध से लोग द्रौपदी के प्रति मोहित हो जाते थे।
द्वापर युग में स्त्रियों के लिए कई तरह की सीमाएं निर्धारित की गई थीं लेकिन द्रौपदी की वैचारिक अभिव्यक्ति उन्हें काफी आधुनिक बनाती थीं। द्रौपदी कर्म करने पर विश्वास रखती थी। वरिष्ठजनों के आदर-सत्कार करने के गुण के साथ द्रौपदी में अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने का साहस भी था। द्रौपदी न्याय और अन्याय के बीच अंतर को जानती थी। यही कारण है कि जब द्रौपदी का भरी सभा में अपमान हुआ, तो द्रौपदी ने न्याय की मांग की और कुरुक्षेत्र की रणभूमि पर न्याय और अन्याय के बीच युद्ध हुआ।
द्रौपदी केवल सुंदर और वैचारिक अभिव्यक्ति वाली स्त्री ही नहीं थीं बल्कि द्रौपदी के पास कई गुण और अद्भुत कलाएं भी थीं। द्रौपदी बहुत भावुक होने के साथ बुद्धिमान भी थीं। साथ ही द्रौपदी को नृत्य, गायन, पाकशाला, राजनीति, समाजशास्त्र आदि विषयों का ज्ञान भी था। द्रौपदी जीवन के विपरीत समय में भी सकारात्मक रहने का प्रयास करती थीं। जैसे, पांचाल नरेश की पुत्री द्रौपदी विपरीत समय में वन में संघर्ष करती रही लेकिन उन्होंने कभी कर्म करना नहीं छोड़ा और हिम्मत नहीं हारी।