नई दिल्ली:- स्विट्जरलैंड ने दोहरे कराधान से बचाव के लिए भारत के साथ हुए समझौते में ‘सर्वाधिक तरजीही राष्ट्र’ के प्रावधान को निलंबित कर दिया है। इस फैसले के बाद स्विट्जरलैंड में काम करने वाली भारतीय कंपनियों पर अधिक कर लगने के साथ भारत में स्विस निवेश पर असर पड़ने की आशंका है।
स्विट्जरलैंड के वित्त विभाग ने 11 दिसंबर को अपने एक बयान में एमएफएन दर्जा वापस लेने की जानकारी देते हुए कहा कि यह कदम भारत के सुप्रीम कोर्ट के पिछले साल आए एक फैसले के संदर्भ में उठाया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि अगर किसी देश के आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD) में शामिल होने से पहले भारत सरकार ने उस देश के साथ कर संधि पर हस्ताक्षर किए हैं तो एमएफएन प्रावधान अपने-आप लागू नहीं होता है।
भारत ने कोलंबिया और लिथुआनिया के साथ कर संधियों पर हस्ताक्षर किए थे, जो कुछ तरह की आय पर कम कर दरें प्रदान करती थीं। ये दोनों देश बाद में ओईसीडी का हिस्सा बन गए। स्विटजरलैंड ने 2021 में कहा था कि कोलंबिया और लिथुआनिया के ओईसीडी सदस्य बनने का मतलब है कि भारत-स्विट्जरलैंड कर संधि पर एमएफएन प्रावधान के तहत लाभांश पर पांच प्रतिशत की दर ही लागू होगी, न कि समझौते में उल्लिखित 10 प्रतिशत की दर।
हालांकि अब एमएफएन का दर्जा हट जाने के बाद स्विट्जरलैंड एक जनवरी, 2025 से रिफंड का दावा करने वाले भारतीय कर निवासियों और विदेशी कर क्रेडिट का दावा करने वाले स्विस कर निवासियों के लिए लाभांश पर 10 प्रतिशत कर लगाएगा। स्विस वित्त विभाग ने अपने बयान में आय पर करों के संबंध में दोहरे कराधान से बचने के लिए दोनों देशों के बीच हुए समझौते के एमएफएन प्रावधान को निलंबित करने की घोषणा की।
स्विट्जरलैंड ने अपने इस निर्णय के लिए 2023 में नेस्ले से संबंधित एक मामले में आए उच्चतम न्यायालय के एक फैसले का हवाला दिया। डिब्बाबंद खाद्य उत्पादों के कारोबार में लगी नेस्ले का मुख्यालय स्विट्जरलैंड के वेवे शहर में है। बयान के मुताबिक, नेस्ले मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2021 में दोहरे कराधान से बचाव संधि (DTAA) में एमएफएन खंड को ध्यान में रखते हुए बकाया कर दरों के अनुप्रयोग को बरकरार रखा था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 19 अक्टूबर, 2023 के एक फैसले में इस फैसले को पलट दिया था।
स्विस सरकार के इस फैसले पर कर परामर्शदाता नांगिया एंडरसन में कर साझेदार संदीप झुनझुनवाला ने कहा कि अब स्विट्जरलैंड में काम करने वाली भारतीय इकाइयों की कर देनदारियां बढ़ सकती हैं। एकेएम ग्लोबल फर्म में कर साझेदार अमित माहेश्वरी ने कहा कि इससे भारत में स्विस निवेश प्रभावित हो सकता है क्योंकि एक जनवरी 2025 या उसके बाद अर्जित आय पर मूल दोहरे कराधान संधि में उल्लिखित दरों पर कर लगाया जा सकता है।