साल 1912 में जब टाइटैनिक ने इंग्लैंड के तट को छोड़ा, तब वह दुनिया का सबसे बड़ा जहाज था. उसकी लंबाई करीब 882 फुट थी. लेकिन अपनी ही पहली यात्रा में ये जहाज डूब गया और इस हादसे में लगभग 1500 लोगों की जान चली गई. उसके बाद दुनिया ने जैसे बड़े जहाजों से तौबा ही कर ली. हालांकि कारगो के लिए बड़े जहाज बनते रहे. ऐसा ही एक जहाज जापान ने 1979 में बनाया, जो लंबाई में टाइटैनिक से लगभग दोगुना था. समंदर पर 30 साल राज करने के बाद इस जहाज ने भारत के गुजरात में अपना दम तोड़ा.जी हां, जापान की सुमिटोमो हेवी इंडस्ट्रीज ने 1974-1979 के बीच दुनिया के सबसे बड़े जहाज ‘सीवाइज जाइंट’ का निर्माण किया. ये नाम शुरुआत में इसे नहीं मिला था. जबकि बाद में इसे ओप्पामा, हैप्पी जाइंट और जाहरे वाइकिंग नाम भी मिला.
हालांकि शुरुआत से ही इस जहाज के साथ कई विवादों का रिश्ता रहा.
इस जहाज की किस्मत में शुरुआत से ही दर्द लिखा था. जापान के ओप्पामा शिपयार्ड में इस जहाज को तैयार तो कर लिया गया, लेकिन इसके यूनानी मालिक ने इसे लेने से इंकार कर दिया. तब इसका कोई नाम नहीं था. फिर लंबी कानूनी लड़ाई चली, जिस दौरान इसे शिपयार्ड के नाम पर ही ओप्पामा नाम दे दिया गया. बाद में शिपयार्ड ने ये जहाज चीन के सी. वाई. टुंग को बेच दिया और उन्हीं के नाम के अपभ्रंश के तौर पर इसका नाम ‘सीवाइज जाइंट’ पड़ा.ईरान-इराक युद्ध से पड़ा ‘जहारे वाइकिंग’ नामइस जहाज को ‘जहारे वाइकिंग’ नाम से ही सबसे ज्यादा पॉपुलैरिटी मिली. इसकी लंबाई करीब 1500 फीट थी.
इसका इस्तेमाल मुख्य तौर पर ऑयल टैंकर्स के ट्रांसपोर्टेशन में होता था. क्रूड ऑयल ट्रांसपोर्टेशन की वजह से ही 1988 में इस जहाज को अपनी लाइफ साइकिल का सबसे बड़ा झटका लगा था. तब ये जहाज ईरानी कच्चे तेल को लेकर लाराक आईलैंड पर खड़ा था. तभी सद्दाम हुसैन की एयरफोर्स ने इस पर हमला किया और ये उथले पानी में हल्का डूब गया. हालांकि बाद में इसे रिपेयर किया गया और उसके बाद इसे नॉर्वे की एक कंपनी ने 1991 में खरीद लिया. तभी इसे ‘ जहारे वाइकिंग’ नाम मिला.
1991 में जब इस जहाज को दोबारा बेचा गया, तब इसकी कीमत करीब 4 करोड़ डॉलर लगी. अगर इसे आज के डॉलर की वैल्यू के रूप में देखें तो ये करीब 330 करोड़ रुपए का बैठेगा. इस जहाज को दुनिया के सबसे बड़े सेल्फ-प्रोपेल्ड जहाज का तमगा हासिल है.गुजरात आकर इसने तोड़ा दमलगभग 30 साल समंदर में राज करने के बाद साल 2009 में ये भारत के गुजरात पहुंचा.
यहां दुनिया के सबसे बड़े शिप ब्रेकिंग यार्ड में से एक ‘अलंग’ में इस जहाज को डिस्मेंटल किया गय. लगभग 1000 मजदूरों को पूरा एक साल लगा इस जहाज को तोड़ने में. इस जहाज का लंगर (एंकर) ही करीब 36 टन का था.बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूरहालांकि इस जहाज का दुनिया में सबसे बड़ा होना ही इसके लिए अभिशाप बन गया. ये जहाज दुनिया के कई प्रमुख व्यापारिक मार्गों को पार ही नहीं कर सकता था. इसमें पनामा नहर, स्वेज नहर और इंग्लिश चैनल शामिल हैं.