नई दिल्ली:– तीर्थराज प्रयाग और ऋतुराज वसंत के पावन संगम पर अमृत स्नान की लालसा। स्नान को जाते समय आस्थायुक्त अधीरता व डुबकी लगाकर आते समय मुखमंडल पर असीम संतोष। इस पावन पर्व की व्याख्या के लिए सिर्फ यही दो भाव पर्याप्त हैं।
सूर्योदय के पहले ही तटों पर कल्पवासियों ने स्नान पुण्य लूटा तो दोपहर 11.53 के बाद मुहूर्त की प्रतीक्षा समाप्त हुई। हर-हर महादेव और जय गंगा मैया के जयघोष के साथ प्रारंभ इस स्नान क्रम ने रात्रि आठ बजे तक एक करोड़ 29 लाख की संख्या स्पर्श कर ली।
यह संख्या सोमवार को और बढ़ेगी जब उदया तिथि की प्रतीक्षा कर रहे अखाड़ों के अमृत स्नान के साथ ही अन्य श्रद्धालु डुबकी लगा रहे हैं।
पांच करोड़ श्रद्धालुओं के आने अनुमान
प्रशासन का अनुमान है कि सोमवार को लगभग पांच करोड़ श्रद्धालु स्नान करेंगे। प्रात:काल से ही संगम जाने वाले हर मार्ग पर तो आस्था का वेग प्रवाहमान है। त्रिवेणी तट पर उमड़े पीतांबरधारी भक्त सूर्योदय की लालिमा में दमक रहे। वासंतिक प्रवाह में हर घाट संगम है तो प्रत्येक डुबकी में मोक्ष की संतुष्टि।
12 किमी क्षेत्र में फैले 44 घाटों पर स्नान की आतुरता ऐसी कि जहां जगह मिली, वहीं डुबकी लगाकर स्वयं को धन्य कर लिया। तीन, सात और ग्यारह डुबकियों का स्नान लंबे समय तक चल रहा था। घाटों पर तैनात जल पुलिस कर्मी कई लोगों को टोकते भी दिखे कि बस हो गया, बाहर निकलिए। स्नान करने के उपरांत पीतवस्त्र धारण करके लौटते श्रद्धालु अलग ही आभा उत्पन्न कर रहे थे।
डुबकी के बाद समस्त शीश गंगा मैया के समक्ष श्रद्धावनत थे तो आंखों में देव और संतदर्शन की लालसा जन्म ले चुकी थी। यही लालसा अक्षयवट और लेटे हनुमानजी तक पहुंचने का रास्ता पूछ रही थी। अखाड़ों के मार्ग पर वेगवान जनसमूह के मुखमंडल पर हठयोगियों के प्रति विस्मययुक्त आस्था स्पष्ट थी।
लेटे हनुमानजी के दर्शन की आतुर लोगों की पंक्ति से भगवा और पीत का अदभुत संगम दिखा। स्नान करके लौट रहे अयोध्या के संत सीतारमण कहते हैं कि कुंभ सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं है। कुंभ के भाव में गोते लगाएं और इसके सरोकारों पर दृष्टि गड़ाकर आगे बढ़ें तो कई मंतव्य तथा जीवन व समाज के संचालन के लिए आवश्यक संदेश सामने आएंगे।
सनातन संस्कृति का शंखनाद दिखेगा। सनातन की व्याख्या का पूरा सार मिलेगा। अखाड़ों में सुशोभित विभिन्न पंथ और अखाड़ों के संतों को देखिए, उनके उपक्रम भले ही विभिन्न हों लेकिन लक्ष्य बस एक है सर्वकल्याण और मोक्ष। मां वीणावादिनी की उपासना के पर्व पर उमड़े विभिन्न जाति-वर्ग के समूह से सनातन धर्म का यह सिद्धांत पुष्ट होता दिखा कि ‘एकम सत विप्रा बहुधा वदन्ति ।’
यानी सत्य एक है, लेकिन विद्वानों ने अनेक प्रकार से इसकी व्याख्या की है। सनातन के अलावा कोई धर्म ऐसा नहीं है जो यह न कहता हो कि ईश्वर को सिर्फ उसी के रास्ते से पाया जा सकता है । सिर्फ सनातन ही ऐसे किसी दावे से दूर रहता है।
वसंत पंचमी पर यह सत्य भी पुष्ट होता दिखा कि श्रद्धालु भले ही विभिन्न प्रांतों और अनेक मार्गों से आए हों, लेकिन उनका साध्य एक ही था एक डुबकी से अनंत पुण्य की कामना। कुंभ सनातन में छिपी देश की समृद्धि, शक्ति, शांति, एकता और अखंडता को अक्षुण्ण रखने की सामर्थ्य की उद्घोषणा का भी माध्यम है।
हमारे पूर्वजों ने बहुत सोच-समझकर कुंभ की परंपरा डाली होगी विश्व को समझाने के लिए अनेकता में एकता ही सनातन और भारत की विशेषता है। मतभिन्नता भारत की कमजोरी नहीं बल्कि शक्ति है । इस संदेश को पूरा विश्व आत्मसात और ग्रहण कर रहा है।