नई दिल्ली:– अन्ना आज के युग में गांधीवादी तौर तरीकों से देश के लोगों के लिए मुद्दे उठाने में हमेशा ही आगे रहे हैं। चाहे गांवों या देश की जनता के विकास के लिए राज्य सरकार और केंद्र सरकार से टकराना ही क्यों न हो। अन्ना अकेले ही बिना किसी सहयोग या सहायता की अपेक्षा के खड़े होते रहे हैं।आज इन्ही अन्ना का जिन्हें पद्मश्री और पद्मभूषण सम्मान से नवाजा जा चुका है उनका जन्मदिन है
अन्ना हजारे का वास्तविक नाम किसन बाबूराव हजारे हैं। उनका जन्म महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के बिंगर में 15 जून 1937 को हुआ था। वे बाबूराव हजारे और लक्ष्मीबाई के सबसे बड़े बेटे हैं। अन्ना का बचपन बहुत ही संघर्ष और गरीबी में बीता था। उनके पिता ने आयुर्वेद आश्रम में एक श्रमिक के रूप में काम किया करते थे। एक रिश्तेदार की मदद से अन्ना मुंबई में आकर पढ़ाई तो शुरु की, लेकिन वे 7वीं कक्षा तक ही पढ़ सके, लेकिन इसके बाद उन्हें आगे सहयोग नहीं मिल सका।
परिवार की हालात सुधारने के लिए इसके बाद उन्होंने दादर रेलवे स्टेशन फूल बेचने की दुकान में का काम शुरू किया जहां उन्हें 40 रुपये का वेतन मिलता था। बाद में उन्होंने खुद भी फूलों की दुकान खोली और अपने दो भाइयों को रागेगण से मुंबई बुला लिया।इसके बाद अन्ना 1960 में अपने दादा की ही तरह फौज में भर्ती हुए। शुरू में अन्ना फौज में एक ट्रक ड्राइवर के तौर पर भर्ती हुए थे, लेकिन बाद में वे एक सैनिक हो गए थे। 1965 के भारत पाक युद्ध में उनकी नियुक्ति खेमकरण सीमा पर हुई जहां उनके साथियों पर हमला हुआ जिसमें वे अकेले ही बचे थे।
इस युद्ध में चमत्कारिक तौर से बचने की घटना ने उन्हें जैसे हिलाकर रख दिया था। इसके बाद तो उन्होंने अपने जीवन के लक्ष्यों के बारे में फिर सोचना शुरू किया और अपना जीवन समाज सेवा में लगाने का फैसला किया। इसी के साथ ही वे आजीवन अविवाहित भी रहे। समाज सेवा के अपने कार्य उन्होंने रालेगण सिद्धि के पास एक गांव से शुरुआत की थी। यहां से यह सफर 1991 में महाराष्ट्र की शिवसेना- BJP सरकार के कुछ भ्रष्ट मंत्रियों को हटाने की मांग करते हुए भूख हड़ताल से होते हुए फिर 1997 में सूचना के अधिकार अधिनियम के समर्थन में मुंबई में अभियान चलाते हुए 2011 में जब अन्ना ने जन लोकपाल विधेयक के लिए अनशन तक जा पहुंचा।
इस अनशन से अन्ना को न केवल देशव्यापी समर्थन अपितु अभूतपूर्व लोकप्रियता भी मिली। जन लोकपाल विधेयक के लिए सरकार ने अन्ना की मांगे मानते हुए एक समिति बनाई और जनलोकपाल विधेयक पेश किया। लेकिन अन्ना और उनके साथी बिल के मसौदे से बिल्कुल भी सहमत नहीं थे। हालांकी वादे शर्तों का दौर चलता रहा और अन्ना फिर से अनशन पर बैठे। लेकिन अंततः जन लोकपाल विधेयक के लिए अनशन और आंदोलन बिना नतीजे के ही खत्म हो गया और अन्ना अपने गांव लौट गए। लेकिन इससे अन्ना का सम्मान और रुतबा आज भी उतना ही है। वहीं अन्ना के प्रिय शिष्य अरविंद केजरीवाल आगे जाकर दिल्ली के मुख्यमंत्री बने, लेकिन आजकल वे जेल की सलाखों के पिछे हैं।