त्रिपुरा। मंगलवार को कोर्ट ने इस मामले को लेकर गंभीर चिंता जताई और प्रशासन को आदेश दिया कि वो इस संबध में तुरंत कदम उठाए.
कोर्ट ने कहा कि ज़रूरी पड़ने पर प्रशासन इसके लिए ज़िम्मेदार लोगों को गिरफ्तार करे.
ये मामला त्रिपुरा के उनाकोटि और नॉर्थ त्रिपुरा ज़िले के दो चकमा आदिवासी परिवारों का है जिन्होंने हाल में ईसाई धर्म अपना लिया था.
हाई कोर्ट ने अपने आदेश में क्या कहा
जस्टिस अरिन्दम लोध ने राज्य प्रशासन को इस तरह की असंवैधानिक गतिविधि में शामिल होने वालों के ख़िलाफ़ कड़े कदम उठाने और भारतीय संविधान के सिद्धांतों और मूल्यों की रक्षा करने का आदेश दिया है.
उन्होंने चकमा समुदाय से जुड़े पारंपरिक संगठनों को आदेश दिया कि वो ‘असंवैधानिक’ आदेश जारी न करें.
साथ ही चेतावनी दी कि इस तरह की घटनाएं फिर हुईं तो प्रशासन और पुलिस उनके ख़िलाफ़ सख्त कदम उठा सकती है.
कोर्ट ने चकमा समुदाय के किसी भी सदस्य के ख़िलाफ़ ग़ैरक़ानूनी और असंवैधानिक गतिविधियों में शामिल रहने के ख़िलाफ़ चेतावनी देने के साथ ये अपील की कि सभी भारतीय संविधान का पालन करें.
कोर्ट ने अपन आदेश में कहा, “अगले आदेश तक धर्म के आधार पर बहिष्कार और याचिकाकर्ता को समाज से बाहर करने से जुड़े सभी आदेश स्थगित किए जाते हैं.”
इसके साथ-साथ कोर्ट ने राज्य प्रशासन से कहा कि वो समाजपति, खुद को समुदाय के नेता कहने वालों या इस तरह की असंवैधानिक गतिविधियों में शामिल चकमा समुदाय के लोगों के ख़िलाफ़ सख्त कार्रवाई करें.
कोर्ट ने कहा, “भारतीय संविधान की भावना और मूल्यों को बचाने के लिए राज्य प्रशासन किसी भी समुदाय के कसी भी व्यक्ति के ख़िलाफ़ कदम उठा सकता है. भारतीय संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन करने वालों, ग़रैक़ानूनी गतिविधियों में शामिल रहने वालों को गिरफ्तार करने में राज्य प्रशासन कोताही नहीं बरतेगा.”
कोर्ट के आदेश के अनुसार राज्य प्रशासन को इस मामले में अदालत को एक्शन टेकन रिपोर्ट सौंपनी है.
हाई कोर्ट के इस आदेश को धर्म के आधार पर बहिष्कार रोकने और संवैधानिक सिद्धांतों का पालन करने की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है.