नई दिल्ली:– दुनिया भर के वैज्ञानिकों की सबसे बड़ी खोजों में से एक यह सवाल है कि क्या पृथ्वी के अलावा अन्य ग्रहों पर भी जीवन है? जलवायु परिवर्तन और धरती पर बढ़ती आपदाओं के बीच, वैज्ञानिक अब अन्य ग्रहों पर जीवन की संभावनाओं की तलाश में जुटे हैं। इस बीच, जर्मनी के बर्लिन स्थित टेक्निक यूनिवर्सिटी के एस्ट्रो-बायोलॉजिस्ट डिर्क शुल्ज-माकुच ने मंगल ग्रह पर जीवन के संभावित अस्तित्व को लेकर एक चौंकाने वाला खुलासा किया है।
NASA का वाइकिंग मिशन
1975 में, NASA ने मंगल ग्रह पर जीवन की तलाश के लिए वाइकिंग मिशन लॉन्च किया था। इस मिशन के तहत, नासा ने दो स्पेसक्राफ्ट वाइकिंग-1 और वाइकिंग-2 मंगल ग्रह की सतह पर भेजे थे। वाइकिंग-1 मंगल पर उतरने वाला पहला स्पेसक्राफ्ट था, जिसने मंगल की कक्षा में पहुंचने के बाद, एक महीने तक यात्रा की और फिर क्लाइस प्लैनिटिया क्षेत्र में लैंडिंग की। वाइकिंग-2 ने मंगल की सतह की हाई-रेजोल्यूशन तस्वीरें भेजीं, जिन्होंने दुनियाभर में हलचल मचा दी थी।
क्या NASA की गलती से जीवन की संभावना हुई खत्म?
वाइकिंग मिशन के दौरान NASA ने मंगल ग्रह की मिट्टी को पानी और पोषक तत्वों के साथ मिलाकर परीक्षण किया था, ताकि यह पता चल सके कि क्या जीवन की संभावना हो सकती है। शुरुआती परिणाम ने जीवन के संकेत दिए थे, लेकिन कई दशकों बाद, शुल्ज-माकुच का मानना है कि नासा के द्वारा किए गए परीक्षण के परिणाम गलत थे। उनका कहना है कि NASA ने अनजाने में जीवन की संभावना को समाप्त कर दिया, क्योंकि उन्होंने परीक्षण के दौरान ज्यादा पानी मिलाकर जीवन की संभावनाओं को नष्ट कर दिया।
मंगल ग्रह पर जीवन: क्या बिना पानी के संभव है?
शुल्ज-माकुच ने अपनी थ्योरी में कहा कि मंगल ग्रह पर जीवन की संभावना नमी खींचने वाले हाइग्रोस्कोपिक सॉल्ट पर निर्भर हो सकती है, जैसा कि चिली के अटाकामा रेगिस्तान में पाए जाने वाले सूक्ष्मजीवों की स्थिति है। उनका मानना है कि वाइकिंग लैंडर ने गलती से ज्यादा पानी मिलाकर जीवन की संभावना को खत्म कर दिया।
उन्होंने यह भी बताया कि, “मंगल ग्रह पर पानी के तरल रूप को प्राथमिकता देने की बजाय, भविष्य के मिशनों को हाइग्रोस्कोपिक सॉल्ट पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जो वातावरण की नमी को अवशोषित कर सकता है।”
भविष्य के मिशनों के लिए नई दिशा
शुल्ज-माकुच ने मंगल ग्रह पर जीवन की खोज के लिए नए मिशनों का सुझाव दिया है, जिसमें ग्रह के चरम वातावरण को समझने की दिशा में और अधिक जानकारी हासिल की जा सके। हालांकि, उन्होंने यह भी माना कि उनका सिद्धांत अभी भी अटकलों पर आधारित है और इसे साबित करने के लिए कई स्वतंत्र तरीकों की आवश्यकता है।