आजादी की लड़ाई और देश को एक सूत्र में पिरोने में तिरंगे का अहम योगदान रहा. आजादी के बाद तिरंगा भारत का राष्ट्रीय ध्वज बना. हालांकि तिरंगे को लेकर तमाम विवाद भी हुआ. यहां तक कि महात्मा गांधी भी नाराज हो गए थे. वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल और दूसरे नेताओं से मशविरा के आजादी के लिए 15 अगस्त 1947 का दिन तक किया. इससे लगभग तीन हफ्ते पहले 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा की एक बैठक बुलाई गई, इस बैठक में जो सबसे अहम चर्चा होने वाली थी, वह थी भारत के राष्ट्रीय ध्वज को लेकर थे.गांधी को झंडे को बदल दिया गयासंविधान सभा की बैठक में घंटों की माथापच्ची के बाद तिरंगे को इसके वर्तमान स्वरूप में राष्ट्रीय ध्वज के तौर पर अपनाने पर मुहर लग गई. हालांकि इससे पहले जो झंडा, यूनियन जैक (अंग्रेजी हुकूमत का ध्वज) की जगह लेने वाला था, वह बीते 30 सालों से क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता सेनानियों की तमाम बैठकों, जुलूस और प्रदर्शनों में लहराता आया था. उस झंडे में ऊपर केसरिया, बीच में सफेद और नीचे हरे रंग की पट्टी थी. बीच में नीले रंग से चरखा बना हुआ था. जो सबसे दिलचस्प बात थी वो ये कि इस झंडे को खुद महात्मा गांधी ने आजादी की लड़ाई लड़ रही कांग्रेस के लिए चुना था.
…इतिहासकार डोमिनिक लापियर और लैरी कॉलिन्स अपनी किताब ‘फ्रीडम ऐट मिडनाइट’ में लिखते हैं कि झंडे के ऊपर बीचो-बीच चरखा एक तरीके से महात्मा गांधी की निजी मुहर जैसा था. यह मामूली सा अस्त्र महात्मा गांधी ने भारत के लोगों को अहिंसात्मक मुक्ति के लिए दिया था. हालांकि जब आजादी की तारीख लगभग तय हो गई तो एक वर्ग यह कहने लगा कि भारत के नए राष्ट्रीय ध्वज पर गांधी जी के ‘खिलौने’ का क्या काम? खुद कांग्रेस के तमाम नेता महसूस कर रहे थे कि चरखा अब अतीत की चीज हो गई है और सिर्फ औरतों के मतलब की चीज है.कांग्रेस के तमाम नेताओं ने अलग-अलग चीजें सुझाई और आखिरकार राष्ट्रीय ध्वज में बीचो-बीच सबसे सम्मानित जगह अशोक चक्र को मिला.
इस तरह दो शेरों के बीच शक्ति तथा साहस का प्रतीक अशोक का धर्म चक्र, नए भारत का प्रतीक बन गया. डोमिनिक लापियर और लैरी कॉलिन्स लिखते हैं कि जब महात्मा गांधी को अपने अनुयायियों से पता चला कि भारत का राष्ट्रीय ध्वज बदल दिया गया है और चरखे की जगह उसपर अशोक स्तंभ शामिल कर लिया गया है तो वह बहुत उदास हुए.महात्मा गांधी ने कहा, ”यह डिजाइन कितना ही कलात्मक क्यों ना हो, मैं इस झंडे को कभी सलामी नहीं दूंगा, जिसके पीछे इस तरह का संदेश हो..’किसने बनाया तिरंगे का डिजाइनभारत के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को आज हम जिस रूप में देखते हैं, उसे पिंगली वेंकैया ने साल 1921 में डिजाइन किया था. वेंकैया खुद स्वतंत्रता सेनानी, लेखक और भूविज्ञानी थे. हालांकि आजादी के पड़ाव में भारत का ध्वज भी कई बार बदला. साल 1906 में जो ध्वज हुआ करता था उसपर सबसे ऊपर हरी पट्टी थी और सफेद रंग से कमल का निशान बना था.
बीच में पीली पट्टी के ऊपर वंदे मातरम लिखा था और सबसे नीचे लाल पट्टी पर चांद और सूरज का आकार बना था.फिर इसके बाद 1907 में जो ध्वज आया, उसमें सबसे ऊपर केसरिया पट्टी, बीच में पीली पट्टी और सबसे नीचे हरी पट्टी थी. इसके बाद 1921 में जो ध्वज आया उसमें सबसे ऊपर सफेद पट्टी, बीच में हरी पट्टी और नीचे लाल पट्टी थी. इस पर भी चरखे का निशान बना हुआ था. फिर 1917, 1931 में भी ध्वज में बदलाव हुआ. आखिरकार 1947 में हमने तिरंगे को अंगीकार किया और आज वही भारत का राष्ट्रीय ध्वज है.