नई दिल्ली:– मौनी अमावस्या पर प्रयागराज महाकुंभ में भगदड़ के बाद सीएम योगी आदित्यनाथ ने सारे वीआईपी प्रोटॉकॉल खत्म करने के आदेश दे दिए. इस पर मन में सवाल आता है कि आखिरकार ये प्रोटोकॉल थे क्या? आईटी के इस दौर में प्रोटोकॉल का जिक्र आने पर वो तरीका समझ में आता है जिसके जरिए मोबाइल और लैपटॉप के ऐप को काम पर लगाया जाता है. प्रयोगशालाओं में काम करने या किसी बीमारी का इलाज करने की निर्धारित प्रक्रिया भी प्रॉटोकॉल के तौर पर ही जानी जाती है.राजनीति और प्रशासन की दुनिया में इसका मतलब वैसा ही होता है लेकिन इसे किसी राजनेता या अधिकारी के सम्मान की प्रक्रिया से जोड़ दिया जाता है.
प्रोटोकॉल का पूरा महकमा है
इस लिहाज से प्रोटोकॉल का एक पूरा महकमा होता है. जिलों में इसके इंचार्ज एडीएम प्रोटोकॉल होता है. वही निर्धारित प्रक्रिया के मुताबिक राजनेताओं के लिए जिले में सरकार की ओर से व्यवस्था करता है. इसके तहत मंत्रियों, विधायकों को सरकारी गेस्ट हाउस या पात्र नेताओं को गाड़ी वगैरह दी जाती है.व्यवस्था के लिए कुंभ मेले को भी अलग जिला इकाई के तौर पर माना जाता है. लिहाजा वहां भी प्रोटोकॉल का जिम्मा एडीएम स्तर के अपर मेला अधिकारी के जिम्मे रहती है.
प्रमुख पर्वों पर नहीं आते रहे हैं वीआईपी
वैसे तो मेले में आने वाली भीड़ और उसे कंट्रोल करने में सरकारी अमले की व्यस्तता को देखते हुए एक परंपरा रही है कि मुख्य स्नान पर्वों पर कोई बड़ा अफसर या मंत्री मेले में नहीं आता रहा. बाकी दिन भी अगर कोई राजनेता, राज्यपाल या उसी स्तर का कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति श्रद्धाबस स्नान करना ही चाहता था, तो उसकी एक पारंपरिक व्यवस्था थी. महत्वपूर्ण व्यक्ति को मेले और शहर को जोड़ने वाली जगह पर गऊघाट के पास वीआईपी घाट ले जाया जाता और वहां से नाव के जरिए उसे संगम तक पहुंचा दिया जाता था. इससे मेले की भीड़ और व्यवस्था पर बहुत ही कम असर पड़ता था.