जम्मू-कश्मीर :- विधानसभा का पहला सत्र संपन्न हो चुका है। इसमें जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे की बहाली को लेकर शुरू हुआ हंगामा बाहर भी जारी है और यह रावी दरिया के पार देश के विभिन्न भागों में भी गूंजने लगा है।
हालांकि इससे जम्मू-कश्मीर में जमीनी स्तर पर कुछ भी बदलने नहीं जा रहा है। यह केवल एक राजनीतिक बहस का विषय बनकर विभिन्न पार्टियों के लिए गुणा-भाग का माध्यम रहेगा।
खुद को बैकफुट पर महसूस कर रही कांग्रेस
इस सत्र ने यह भी साफ कर दिया है कि सत्ताधारी नेशनल कॉन्फ्रेंस कानून व्यवस्था संबंधी संवेदनशील मामलों से खुद को यथासंभव अलग रखते हुए खुद को विकासात्मक मुद्दों पर केंद्रित रख अपने राजनीतिक जनाधार को बढ़ाने का प्रयास करेगी।
दूसरी तरफ भाजपा ने स्पष्ट कर दिया है कि वह विशेष दर्जे के मुद्दे पर किसी भी तरह की बहस की गुंजायश का मौका नहीं देने जा रही है।
इस पूरे क्रम में राष्ट्रीय स्तर पर जहां कांग्रेस खुद को बैकफुट पर महसूस करती नजर आ रही है, वहीं प्रदेश में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, पीपुल्स कॉन्फ्रेंस, अवामी इत्तेहाद पार्टी जैसे दल नेशनल कॉन्फ्रेंस के समक्ष बौने साबित हो गए हैं।
4 नवंबर को शुरू हुआ था विधानसभा सत्र
जम्मू-कश्मीर विधानसभा का सत्र चार नवंबर को शुरू हुआ था। इससे पहले ही सभी को मालूम था कि अनुच्छेद 370 का मुद्दा सदन में गूंजेगा और नेशनल कॉन्फ्रेंस जिसके चुनाव घोषणापत्र में इसकी पुनर्बहाली एक मुख्य बिंदू है, इस पर प्रस्ताव लाएगी।
सत्र शुरू होने पर पीडीपी के वहीद उर रहमान परा ने प्रस्ताव लाया, जिसकी स्पीकर ने पुष्टि नहीं की, लेकिन तय हो गया था कि नेशनल कॉन्फ्रेंस अब प्रस्ताव लाएगी।
नेकां के प्रस्ताव में 370 और 35ए का जिक्र नहीं
हालांकि उपराज्यपाल के अभिभाषण में इस विषय का कोई उल्लेख नहीं था और उसकी जगह सिर्फ जम्मू-कश्मीर राज्य के दर्जे और संवैधानिक गारंटी की बात का उल्लेख था। नेशनल कॉन्फ्रेंस ने प्रस्ताव लाया जो भाजपा के हंगामे के बीच पारित हो गया।
इस प्रस्ताव में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने अनुच्छेद 370, 35ए का कोई जिक्र नहीं किया बल्कि यह कहा कि विशेष दर्जा बहाल हो, जम्मू-कश्मीर के लोगों के अधिकार सुरक्षित हों और यह सब बातें निर्वाचित प्रतिनिधियों के साथ बातचीत के जरिए तय हों।
केंद्र के साथ मिलकर चलेंगे उमर
कश्मीर मामलों के जानकार अजय बाचलू ने कहा कि विशेष दर्जे की बात अगर छोड़ दी जाए तो जिस तरह से उपराज्यपाल के अभिभाषण में सरकार ने अपनी प्राथमिकताओ को गिनाया है। उमर अब्दुल्ला ने अंतिम दिन अपने संबोधन में कानून व्यवस्था से जुड़े मुद्दों पर बात की है, उससे स्पष्ट है कि वह भी अच्छी तरह जानते हैं कि जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा तभी मिलेगा, जब केंद्र चाहेगा।
केंद्र की प्राथमिकता इस समय जम्मू-कश्मीर में शांति बहाली की प्रक्रिया की नींव को मजबूत बनाना है। इसलिए उमर ने सदन में कहा है कि विकास और खुशहाली के लिए शांति बहाली जरूरी है और कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी उपराज्यपाल के पास है। इसलिए प्रदेश सरकार जम्मू-कश्मीर में शांत का वातावरण बनाए रखने में उनका सहयोग करेगी।
प्रस्ताव से खुली बहस जन्मी, कांग्रेस को घेरती रहेगी भाजपा
जम्मू-कश्मीर मामलों के जानकार अहमद अली फैयाज ने कहा कि यह प्रस्ताव एक खुली बहस को जन्म देता है और यह कहीं भी अनुच्छेद 370 की बहाली को बाध्य नहीं बनाता है। बातचीत के जरिए जब विशेष दर्जे की बहाली की प्रक्रिया को अपनाया जाएगा तो केंद्र में चाहे किसी की भी सरकार हो, वह जम्मू-कश्मीर को अलग संविधान और अलग निशान नहीं दे सकती।
वह सिर्फ हिमाचल समेत देश के कुछेक राज्यों को मिले विशेष प्रविधान जम्मू-कश्मीर को प्रदान करेगी। उससे पहले यह समझना होगा कि क्या केंद्र सरकार इस प्रस्ताव पर गौर करेगी, कभी नहीं। वह इस प्रस्ताव को मुद्दा बनाकर कांग्रेस को घेरती रहेगी, क्योंकि प्रदेश में कांग्रेस और नेशनल कान्फ्रेंस में गठजोड़ है।
नेकां की नजर अब जम्मू पर
विशेष दर्जे की बहाली के प्रस्ताव के राष्ट्रीय राजनीति में मायनों को ध्यान में रखते हुए जम्मू-कश्मीर में भाजपा विधायकों ने इसके पारित होने के बाद भी अपना विरोध जारी रखा है। इस पूरे मामले में नेशनल कॉन्फ्रेंस खुद को लाभ की स्थिति में देख रही है।
नेकां का मानना है कि इस प्रस्ताव से कश्मीर में उसने अपनी जमीन को पहले से ज्यादा मजबूत किया है और अब जम्मू संभाग में भी उसे अपना जनाधार बढ़ाने का अवसर मिलेगा। इस पूरे प्रकरण में सदन में पीपल्स कॉन्फ्रेंस, पीडीपी और अवामी इत्तिहाद पार्टी जो नेशनल कॉन्फ्रेंस के लिए कश्मीर में मुश्किल पैदा करते हैं, भी उसके आगे लाचार नजर आए।