क्या होती है शव साधना, क्यों अघोरी बाबा इसे श्मशान में करते हैं और इससे क्या सिद्ध करते हैंक्या होती है शव साधना, क्यों अघोरी बाबा इसे श्मशान में करते हैं और इससे क्या सिद्ध करते हैंशव साधना एक तांत्रिक साधना (आध्यात्मिक अभ्यास) है जिसमें अभ्यासकर्ता ध्यान के लिए एक शव पर बैठता है. शव साधना वामाचार (‘हेटेरोडॉक्स’) पूजा पद्धति का हिस्सा है, जिसका पालन गूढ़ तंत्र द्वारा किया जाता है. शव साधना को तंत्र के सबसे महत्वपूर्ण, सबसे कठिन और सबसे गुप्त अनुष्ठानों में एक माना जाता है. जानते हैं इसके बारे में क्या कहा जाता है और क्या लिखा गया है.
शव साधना एक गुप्त विद्या मानी जाती है, लिहाजा हमेशा ये रात चुपचाप की जाती है. ये अनुष्ठानिक तौर पर भारत की बहुत प्राचीन विद्या मानी जाती है. अघोरी बाबा लोगों को इस साधना में सिद्धहस्त माना जाता है. इस साधना मृत शरीर को साधना का जरिया बनाया जाता है. अनुष्ठान के सख्त नियम होते हैं, जिनका पालन करना जरूरी माना जाता है. किताबें लिखती हैं कि अघोरी जिस शव के जरिए साधना करते हैं, उसके चयन के भी मापदंड होते हैं. (personal blog)110शव साधना एक गुप्त विद्या मानी जाती है, लिहाजा हमेशा ये रात चुपचाप की जाती है. ये अनुष्ठानिक तौर पर भारत की बहुत प्राचीन विद्या मानी जाती है. अघोरी बाबा लोगों को इस साधना में सिद्धहस्त माना जाता है.
इस साधना मृत शरीर को साधना का जरिया बनाया जाता है. अनुष्ठान के सख्त नियम होते हैं, जिनका पालन करना जरूरी माना जाता है. किताबें लिखती हैं कि अघोरी जिस शव के जरिए साधना करते हैं, उसके चयन के भी मापदंड होते हैं. (personal blog) शव साधना को लेकर देश से विदेश तक कई लेखकों ने किताबें लिखीं. मुख्य तौर पर इस तरह की साधना बनारस के गंगा के घाटों पर ज्यादा की जाती हैं. तंत्र मंत्र विशेषज्ञ अरुण शर्मा से लेकर कई विदेशी लेखकों ने इस पर कई किताबें लिखी हैं. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस ने इसे लेकर जून मैकडैनियल की किताब ऑफरिंग फ्लावर्स, फीडिंग स्कल्स – पॉपुलर गॉडेस वरशिप इन वेस्ट बंगाल में इस बारे में विस्तार से लिखा है.
साथ ही कौलावली-निर्णय, श्यामराहस्य, तारा-भक्ति-सुधार्नव, पुरश्चार्चार्यर्णव, नीलतंत्र, कुलचूड़ामणि और कृष्णानंद का तंत्रसार इस विद्या की जानकारी देने वाली मुख्य किताबें हैं. हम आगे बताएंगे कि ये साधना क्या है और कैसे की जाती है. (google)210शव साधना को लेकर देश से विदेश तक कई लेखकों ने किताबें लिखीं. मुख्य तौर पर इस तरह की साधना बनारस के गंगा के घाटों पर ज्यादा की जाती हैं. तंत्र मंत्र विशेषज्ञ अरुण शर्मा से लेकर कई विदेशी लेखकों ने इस पर कई किताबें लिखी हैं.
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस ने इसे लेकर जून मैकडैनियल की किताब ऑफरिंग फ्लावर्स, फीडिंग स्कल्स – पॉपुलर गॉडेस वरशिप इन वेस्ट बंगाल में इस बारे में विस्तार से लिखा है. साथ ही कौलावली-निर्णय, श्यामराहस्य, तारा-भक्ति-सुधार्नव, पुरश्चार्चार्यर्णव, नीलतंत्र, कुलचूड़ामणि और कृष्णानंद का तंत्रसार इस विद्या की जानकारी देने वाली मुख्य किताबें हैं. हम आगे बताएंगे कि ये साधना क्या है और कैसे की जाती है. (
हाल में इस तरह की खबरें भी आईं थीं यूट्यूब के एक चैनल द्वारा इस साधना सा लाइव प्रसारण भी किया जा रहा है. तंत्र के नाथ शाखा में कापालिक सम्प्रदाय के तांत्रिक शव-साधना मे पारंगत होते हैं. शाक्त तंत्र में शव साधना को सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान माना जाता है, खासकर पश्चिम बंगाल में. वाराणसी के शैव अघोरी भी इस अनुष्ठान का अभ्यास करने के लिए जाने जाते हैं. (google)310हाल में इस तरह की खबरें भी आईं थीं यूट्यूब के एक चैनल द्वारा इस साधना सा लाइव प्रसारण भी किया जा रहा है.
तंत्र के नाथ शाखा में कापालिक सम्प्रदाय के तांत्रिक शव-साधना मे पारंगत होते हैं. शाक्त तंत्र में शव साधना को सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान माना जाता है, खासकर पश्चिम बंगाल में. वाराणसी के शैव अघोरी भी इस अनुष्ठान का अभ्यास करने के लिए जाने जाते हैं. (google) शव साधना “तांत्रिक रहस्यवाद का सबसे गुप्त हिस्सा” है. हालांकि इसकी गैर- आर्य प्रकृति के कारण इसे सबसे “गलत समझा” माना जाता है. हालांकि इसके जानकार इसे सबसे कठिन आध्यात्मिक अभ्यास मानते हैं.
साधक को अनुष्ठान के सभी नियमों का पालन करना होगा. चेतावनी दी जाती है कि नियमों का उल्लंघन करने पर गंभीर परिणाम हो सकते हैं. (wiki commons)410शव साधना “तांत्रिक रहस्यवाद का सबसे गुप्त हिस्सा” है. हालांकि इसकी गैर- आर्य प्रकृति के कारण इसे सबसे “गलत समझा” माना जाता है. हालांकि इसके जानकार इसे सबसे कठिन आध्यात्मिक अभ्यास मानते हैं. साधक को अनुष्ठान के सभी नियमों का पालन करना होगा.
चेतावनी दी जाती है कि नियमों का उल्लंघन करने पर गंभीर परिणाम हो सकते हैं. (wiki commons) तंत्र के जानकार कहते हैं कि शव साधना का उद्देश्य कुंडलिनी को परम शिव के साथ एकजुट करना है. अनुष्ठान एक शव का उपयोग करके किया जाता है, जिसे पारंपरिक हिंदू धर्म में अत्यधिक अशुद्ध और अशुभ प्रतीक माना जाता है.ऐसा कहा जाता है कि अनुष्ठान अभ्यासकर्ता के मन से मृत्यु के भय को मिटा देता है. इसमें शव के जरिए मृतक की आत्मा को काबू में करके उसे माध्यम बनाकर काम कराया जाता है. लेखक आंद्रे पैडौक्स शव साधना की व्याख्या काले जादू के रूप में करते हैं जो बुरे उद्देश्यों को पूरा करने के लिए की जाती है. ( )
तंत्र के जानकार कहते हैं कि शव साधना का उद्देश्य कुंडलिनी को परम शिव के साथ एकजुट करना है. अनुष्ठान एक शव का उपयोग करके किया जाता है, जिसे पारंपरिक हिंदू धर्म में अत्यधिक अशुद्ध और अशुभ प्रतीक माना जाता है.ऐसा कहा जाता है कि अनुष्ठान अभ्यासकर्ता के मन से मृत्यु के भय को मिटा देता है. इसमें शव के जरिए मृतक की आत्मा को काबू में करके उसे माध्यम बनाकर काम कराया जाता है. लेखक आंद्रे पैडौक्स शव साधना की व्याख्या काले जादू के रूप में करते हैं जो बुरे उद्देश्यों को पूरा करने के लिए की जाती है. (
) इससे जुड़ी किताबें कहती हैं कि तंत्र शास्त्र में शव के संबंध में कठोर नियम हैं. शव ताज़ा और क्षतिरहित होना चाहिए. शरीर का कोई भी अंग कटा या क्षतिग्रस्त नहीं होना चाहिए. हिंदू मान्यता के अनुसार, मृत्यु दो स्तरों पर होती है: एक शारीरिक मृत्यु और एक अनुष्ठानिक मृत्यु. भौतिक मृत्यु के बाद अंतिम तौर पर मृत्यु को तब मुकम्मल माना जाता जब कपाल क्रिया अनुष्ठान हो जाता है. (
इससे जुड़ी किताबें कहती हैं कि तंत्र शास्त्र में शव के संबंध में कठोर नियम हैं. शव ताज़ा और क्षतिरहित होना चाहिए. शरीर का कोई भी अंग कटा या क्षतिग्रस्त नहीं होना चाहिए. हिंदू मान्यता के अनुसार, मृत्यु दो स्तरों पर होती है: एक शारीरिक मृत्यु और एक अनुष्ठानिक मृत्यु. भौतिक मृत्यु के बाद अंतिम तौर पर मृत्यु को तब मुकम्मल माना जाता जब कपाल क्रिया अनुष्ठान हो जाता है. (
शव साधना आमतौर पर अमावस्या के दिन की जाती है. रात में साधक को शव के साथ अकेला छोड़ दिया जाता है. अनुष्ठान आम तौर पर शमशान में किया जाता है. तंत्रसार किताब के अनुसार, शव की फूलों से पूजा की जाती है. उसे भैरव (शिव का एक रूप) और देवी के आसन के रूप में आमंत्रित किया जाता है और देवी को प्रसन्न करने के लिए जागृत होने का अनुरोध किया जाता है. ऐसा माना जाता है कि संस्कार करते समय शव शक्ति का पात्र बन जाता है. (
शव साधना आमतौर पर अमावस्या के दिन की जाती है. रात में साधक को शव के साथ अकेला छोड़ दिया जाता है. अनुष्ठान आम तौर पर शमशान में किया जाता है. तंत्रसार किताब के अनुसार, शव की फूलों से पूजा की जाती है. उसे भैरव (शिव का एक रूप) और देवी के आसन के रूप में आमंत्रित किया जाता है और देवी को प्रसन्न करने के लिए जागृत होने का अनुरोध किया जाता है. ऐसा माना जाता है कि संस्कार करते समय शव शक्ति का पात्र बन जाता है. (
) शाक्त कथाओं में कहा गया है कि शव के मुंह में सुपारी डाल कर उसकी पीठ पर हाथ फेरा जाता है. उस पर चंदन का लेप लगाया जाता है.64 योगिनियों और दिशाओं की पूजा की जाती है. फिर अभ्यासकर्ता शव पर ऐसे चढ़ता है जैसे कोई घोड़े पर बैठता है. कहा जाता है कि इस अनुष्ठान में साधक मुर्दे को जीवित करता है. अगर इस क्रिया को करते हुए साधक भयभीत हो जाता है तो वो पागल हो सकता है लेकिन जिसने इसे कर लिया वो “गुप्त शक्तियां” प्राप्त कर लेता है. लेकिन ये माना जाता है कि ऐसा व्यक्तिय सिद्धियां जरूर हासिल कर लेता है लेकिन ये उसके पतन का कारण भी बन सकती हैं. (
शाक्त कथाओं में कहा गया है कि शव के मुंह में सुपारी डाल कर उसकी पीठ पर हाथ फेरा जाता है. उस पर चंदन का लेप लगाया जाता है.64 योगिनियों और दिशाओं की पूजा की जाती है. फिर अभ्यासकर्ता शव पर ऐसे चढ़ता है जैसे कोई घोड़े पर बैठता है. कहा जाता है कि इस अनुष्ठान में साधक मुर्दे को जीवित करता है. अगर इस क्रिया को करते हुए साधक भयभीत हो जाता है तो वो पागल हो सकता है लेकिन जिसने इसे कर लिया वो “गुप्त शक्तियां” प्राप्त कर लेता है. लेकिन ये माना जाता है कि ऐसा व्यक्तिय सिद्धियां जरूर हासिल कर लेता है लेकिन ये उसके पतन का कारण भी बन सकती हैं. (
अनुष्ठान के अंत में शव को रस्सी के बंधन से मुक्त किया जाता है. फिर से स्नान कराया जाता है. शव को किसी जलाशय में दफनाया या विसर्जित किया जाता है. पूजा की सभी सामग्री भी जल में प्रवाहित कर दी जाती है. ऐसा माना जाता है कि रस्सी खोलने और शव के विसर्जन से अनुष्ठान के दौरान संचित ऊर्जा मुक्त हो जाती है. (news18)910अनुष्ठान के अंत में शव को रस्सी के बंधन से मुक्त किया जाता है. फिर से स्नान कराया जाता है. शव को किसी जलाशय में दफनाया या विसर्जित किया जाता है. पूजा की सभी सामग्री भी जल में प्रवाहित कर दी जाती है. ऐसा माना जाता है कि रस्सी खोलने और शव के विसर्जन से अनुष्ठान के दौरान संचित ऊर्जा मुक्त हो जाती है. (
) आमतौर पर इसे किसी सुनसान जगह पर अकेले करने की सलाह दी जाती है, शव साधना करने वाले साधु को कभी-कभी उसकी तांत्रिक महिला पत्नी, जिन्हें उत्तर साधिका के नाम से जाना जाता है के द्वारा सहायता मिल सकती है. इन साधिकाओं को लेकर भी किताबों में बहुत कुछ लिखा गया है. ये भी लिखा गया है कि इस तरह के अनुष्ठानों में महिला उत्तर साधिकाएं बहुत जरूरी रहती हैं. (
आमतौर पर इसे किसी सुनसान जगह पर अकेले करने की सलाह दी जाती है, शव साधना करने वाले साधु को कभी-कभी उसकी तांत्रिक महिला पत्नी, जिन्हें उत्तर साधिका के नाम से जाना जाता है के द्वारा सहायता मिल सकती है. इन साधिकाओं को लेकर भी किताबों में बहुत कुछ लिखा गया है. ये भी लिखा गया है कि इस तरह के अनुष्ठानों में महिला उत्तर साधिकाएं बहुत जरूरी रहती हैं. (