नई दिल्ली:– 10 दिनों का गणेशोत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा है जहां पर घरों और पंडालों में अच्छी खासी रौनक है इसे बनाए रखने के लिए भक्त हर्षोल्लास के साथ गणेशजी की पूजा और अर्चना कर रहे है। यहां पर गणेशजी की पूजा में जयकारे तो लगाए जाते है जिसकी गूंज उत्साह को और बढ़ा देती है। इन जयकारों में ‘गणपति बप्पा मोरया’ का जयकारा तो आपने सुना ही होगा लेकिन आपको पता है इसका असली अर्थ।
भगवान की आस्था में जोड़े जाने वाले सभी जयकारे भगवान से जुड़ी किसी कहानी का हिस्सा होते है। आज हम बात करेंगे आखिर कब से शुरु हुआ गणपति बप्पा मोरया जयकारे की कहानी के बारे में।
बप्पा मतलब पापा
गणपति जी की पूजा में लगाए जाने वाले जयकारों में बप्पा का अर्थ जानें तो, इसका अर्थ पिता होता है। दरअसल, महाराष्ट्र में पिता को बप्पा कहा जाता है और गणेश के पिता के रूप में माना जाने की वजह से उन्हें बप्पा कहा जाने लगा है। सबसे पहले महाराष्ट्र में ही स्वतंत्रता सैनानी लोकमान्य तिलक ने गणेशोत्सव की शुरुआत की थी जिसके बाद से यह पर्व केवल राज्य तक नहीं देशभर में धूमधाम से मनाया जाता है।
भगवान श्रीगणेश के भक्त से जुड़ी कहानी
माना जाता है कि, गणपति बप्पा मोरया में बप्पा का अर्थ तो पिता होता है लेकिन मोरया का मतलब भगवान श्री गणेशजी के अनन्य भक्त से जुड़ा हुआ है। 600 साल पहले की बात हैं 375 ई. में जन्मे मोरया गोसावी नाम के गणेश भक्त रहा करते थे जिन्हें भगवान का एक अंश भी कहते है। वे अपने माता-पिता के समान ही गणेश भगवान के भक्त थे, बप्पा के प्रति उनकी आस्था इतनी थी कि, वे हर गणेश चतुर्थी पर महाराष्ट्र के चिंचवाड़ से 95 किलोमीटर दूर स्थित मयूरेश्वर मंदिर में दर्शन पैदल चलकर के लिए जाते थे। उन्हें यह प्रक्रिया बाल्यावस्था से शुरु की थी जो 117 की उम्र तक चलता रहा, उम्र ज्यादा होने की वजह से वे चल नहीं पाते थे।
इस पर एक बार की बात है भगवान गणेश, मोरया भक्त के सपने में आए और बोले कि, तुम्हें मंदिर तक आने की जरूरत नहीं। कल सुबह जब तुम स्नान करके कुंड से निकलोगे, तो मैं खुद तुम्हारे पास आ जाऊंगा। अगले दिन सुबह जब मोरया स्नान करके कुंड से निकलने, तो उनके पास गणेश भगवान की ठीक वैसी ही छोटी- सी मूर्ति थी, जैसी उन्होंने सपने में देखी थी।
मोरया की भक्ति का प्रतीक है मंदिर
इसके बाद मोरया भक्त, भगवान के दर्शन पाकर खुश हो गए और धीरे-धीरे ये मंदिर और मोरया की भक्ति दूर-दूर तक जानी जाने लगी। यहां पर चिंचवाड़ में हर कोई भगवान के दर्शन के लिए आने लगे उस दौरान भगवान का नाम लेते ही मोरया का नाम भी लेने लगे। इसके बाद आगे बढ़ते हुए गणपति बप्पा और मोरया का नाम एक होता गया और लोगों में भगवान गणेश का जयकारा लगाते हुए गणपति बप्पा मोरया आज भी लोग इसलिए ही लगाते है।