नई दिल्ली:– एक वक्त था, जब आम बजट और रेल बजट अलग-अलग पेश होते थे। रेल बजट की अहमियत भी काफी ज्यादा थी, क्योंकि रेलवे सरकार के लिए राजस्व का बड़ा स्रोत थी। इसमें नई ट्रेन चलाने और पटरियां बिछाने जैसे एलान होते थे। अगर रेल किराये में कमी या इजाफा करना होता था, तो उसकी घोषणा भी रेल बजट में भी होती थी। लेकिन, साल 2017 से यूनियन बजट और रेल बजट को एक ही में मर्ज (Railway Budget Merged) कर दिया गया।
1924 में शुरू हुआ था रेल बजट
ईस्ट इंडिया रेलवे कमेटी के चेयरमैन सर विलियम एक्वर्थ 1921 में रेलवे के लिए बेहतर मैनेजमेंट सिस्टम पेश किया था। उनकी एकवर्थ कमेटी ने रेल बजट को अलग से पेश करने की सिफारिश की थी। ब्रिटिश हुकूमत ने रेल बजट की शुरुआत 1924 में की। तब से लेकर साल 2016 तक रेल बजट अलग से पेश होता था। आजादी के बाद पहला रेल बजट 1947 में देश के पहले रेल मंत्री जॉन मथाई ने पेश किया था। 2016 में रेल मंत्री रहे पीयूष गोयल ने आखिरी बार रेल बजट पेश किया था।
रेल बजट को खत्म क्यों किया गया?
ब्रिटिश सरकार ने जब रेल बजट को अलग पेश करने का फैसला किया था, तो उस वक्त रेलवे उसकी आमदनी का सबसे बड़ा जरिया था। तब आज की तरह सड़कों का जाल नहीं था। हवाई जहाज और बस-कार जैसे यात्रा के दूसरे सुलभ साधन भी नहीं थे। जब ये साधन बढ़े, तो सरकार की रेलवे से कमाई घटने लगी। यहां तक कि उसे रेलवे के संचालन से नुकसान तक भी होने लगा।
1970 के दशक तक रेलवे बजट का कुल राजस्व में योगदान 30 फीसदी तक था। लेकिन, 2015-16 तक यह घटकर 11.5 प्रतिशत पर आ गया। ऐसे में कई एक्सपर्ट के साथ सरकारी थिंक टैंक नीति आयोग ने भी रेल बजट को अलग से पेश करने की परंपरा खत्म करने का सुझाव दिया, जिसे सरकार ने 2016 में मान भी लिया।
रेल और आम बजट का विलय कब हुआ
केंद्र सरकार ने 21 सितंबर 2016 को रेल बजट को आम बजट के साथ मर्ज करने की मंजूरी दे दी। दिवंगत अरुण जेटली उस समय वित्त मंत्री थे। उन्होंने 1 फरवरी, 2017 को आजाद भारत का पहला संयुक्त बजट पेश किया, जिसमें रेल और आम बजट एक साथ शामिल थे। इस तरह रेल बजट को अलग पेश करने की 92 साल पुरानी प्रथा खत्म हो गई।
रेल बजट को आम बजट में मर्ज करने से सरकार का काफी समय बचने लगा, जो इसकी तैयारी और संसद में चर्चा पर लगता था। इससे रेलवे को भी फायदा हुआ, क्योंकि उसे सरकार को डिविडेंड देने की जरूरत खत्म हो गई। इस बदलाव के बाद रेलवे अपनी जरूरतों को ज्यादा बेहतर तरीके से मैनेज करने लगी। साथ ही, रेल बजट में लोकलुभावन योजनाओं का एलान भी रुक गया, जो कई बार अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदेह होता था।