(नई दिल्ली)। शादी के एक साल बाद ही एक महिला अपने पति से अलग हो गई और अपने बॉयफ्रेंड के साथ लिव-इन रिलेशनशिप (Live in Relationship) में रहने लगी। इसी दौरान वह प्रेग्नेंट भी हो गई। खास बात ये कि उसने अपने पति से तलाक भी नहीं लिया था यानी उसकी शादी अस्तित्व में थी, वह कानूनन शादीशुदा थी जो पति से अलग अपने पुरुष मित्र के साथ रह रही थी। अस्पताल में उसने बच्चे को जन्म दिया। बच्चे के जन्म प्रमाण पत्र में पिता के नाम के तौर पर उसके पति का नाम दर्ज हो गया जबकि बायोलॉजिकल पिता उसका लिव-इन पार्टनर है। बाद में महिला का तलाक हो गया और अब वह बर्थ सर्टिफिकेट पर बच्चे के पिता के तौर पर अपने लिव-इन पार्टनर का नाम डलवाना चाहती है। मामला नवी मुंबई का है। नवी मुंबई महानगर पालिका ने पिता का नाम बदलने से इनकार कर दिया।वाशी मैजिस्ट्रेट कोर्ट में भी महिला की याचिका खारिज हो गई तो वह मुंबई हाई कोर्ट पहुंची। पिछले महीने इस मामले में सुनवाई हुई। अब पूर्व पति की जगह बच्चे के बर्थ सर्टिफिकेट में लिव-इन पार्टनर का नाम डलवाने के लिए वह लंबी कानूनी लड़ाई लड़ रही है।
आखिर लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे जोड़े को (Rights of Live-in Partners) कितना अधिकार है? क्या देश में कानूनन इसकी (Live-in Relationship legal status in India) इजाजत है? शादीशुदा जोड़े के मुकाबले ऐसे जोड़ों को किन अधिकारों से वंचित होना पड़ सकता है? लिव-इन रिलेशन से (Rights of child born out from a live-in relationship) पैदा होने वाले बच्चों और शादी से पैदा होने वाले बच्चों के अधिकारों में क्या कोई फर्क है? पेश है ‘हक की बात’ (Haq Ki Baat) सीरीज के इस अंक में बात लिव-इन रिलेशनशिप और अधिकारों की।
लिव-इन रिलेशनशिप क्या है?लिव-इन रिलेशनशिप (What is Live-in Relationship) को आसान शब्दों में कहें तो ‘बिन फेरे हम तेरे’ का रिश्ता। जहां दो बालिग बिना शादी किए एक साथ रोमांटिक रिलेशनशिप में रहते हों। एक छत के नीचे, पति-पत्नी की तरह। लिव-इन रिलेशन में पार्टनर भले ही पति-पत्नी की तरह रहते हों लेकिन वो शादी के बंधन से नहीं बंधे होते और शादी के लिहाज से एक दूसरे के प्रति जो कानूनी जिम्मेदारियां होती हैं, उससे वो मुक्त होते हैं।लिव-इन रिलेशनशिप की कानूनी स्थिति?किसी भी पुरुष या महिला के लिए बिना शादी किए किसी के साथ रोमांटिक रिलेशन में रहना कानून के हिसाब से गलत नहीं है। वो दोनों एक छत के नीचे, बिल्कुल किसी पति-पत्नी की तरह रिश्ता रख सकते हैं, ये गैरकानूनी नहीं है। चाहे वह शादीशुदा हों, तलाकशुदा हों, दोनों पार्टनर पहले से शादीशुदा हों या अविवाहित हों…वह लिव-इन रिलेशनशिप में रहते हैं तो ये बिल्कुल गैरकानूनी नहीं है, अपराध नहीं है।
कानून के हिसाब से दो बालिग अपनी मर्जी से सेक्स संबंध बना सकते हैं, लिव-इन रिलेशन में भी रह सकते हैं। आलोचक नैतिकता की दुहाई देकर इसका विरोध करते हैं लेकिन कानून के हिसाब से लिव-इन रिलेशनशिप में कुछ भी गलत या गैरकानूनी या आपराधिक नहीं है।ये तो रही लिव-इन रिलेशनशिप की कानूनी स्थिति की बात। लेकिन लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर देश में स्पष्ट कानून नहीं है। इस तरह की रिलेशनशिप में रहने वाले जोड़ों को तमाम चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। उन्हें कानून से समुचित संरक्षण नहीं मिलता क्योंकि लिव-इन रिलेशनशिप से जुड़े मसलों से निपटने के लिए अलग से कोई कानून ही नहीं है।
हालांकि, अदालतें समय-समय पर इससे जुड़े मसलों पर अहम फैसले सुनाती रहती हैं जिससे लिव-इन पार्टनर्स को कानूनी सुरक्षा मिलती है। लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले कपल को शादीशुदा कपल की तरह कानूनी अधिकार नहीं हैं।लिव-इन पार्टनर्स को नहीं मिलते ये अधिकारलिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले जोड़े शादीशुदा जोड़ों के कई अधिकारों से वंचित रहते हैं। लिव-इन पार्टनर का एक दूसरे की संपत्ति में उनका अधिकार या उत्तराधिकार नहीं हो सकता, लेकिन शादी के मामले में ऐसा नहीं होता। लिव-इन पार्टनर अगर अलग होते हैं तो वो मैंटिनेंस यानी भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकते। हालांकि, लिव-इन रिलेशन से पैदा हुए बच्चे को उसी तरह के कानूनी अधिकार हासिल हैं जो शादीशुदा कपल के बच्चे के होते हैं यानी उन्हें संपत्ति, उत्तराधिकार जैसे सभी अधिकार मिलेंगे जो किसी शादीशुदा जोड़े के बच्चे को मिलते हैं।
इलाहाबाद हाई कोर्ट के लिव-इन को लेकर दो हालिया फैसलेलिव-इन रिलेशनशिप में रहने वालों को शादीशुदा जोड़ों की तरह कानूनी संरक्षण नहीं मिलता, इसकी सबसे बड़ी मिसाल तो इलाहाबाद हाई कोर्ट का एक हालिया फैसला है। लिव-इन में रह रहे एक जोड़े ने हाई कोर्ट से सुरक्षा की गुहार लगाई थी लेकिन कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया। लिव-इन में रह रही महिला का अपने पति से कानून तलाक नहीं हुआ था। हालांकि, कोर्ट ने ये जरूर कहा कि अगर लिव-इन में रह रहे जोड़े को खतरा महसूस हो रहा है तो सुरक्षा की मांग को लेकर वो पुलिस के पास जा सकते हैं या सक्षम अदालत का रुख कर सकते हैं।इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court on Live-in Relationship) ने ही लिव-इन में रेप जुड़े एक अन्य केस में अपने हालिया फैसले में इस कॉन्सेप्ट पर ही सवाल उठाया था। 1 सितंबर को दिए अपने आदेश में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि जानवरों की तरह हर मौसम में पार्टनर बदलने का चलन एक सभ्य और स्वस्थ समाज की निशानी नहीं हो सकता।